मंगलवार, 2 जून 2015

हमारी नामाकी हंगामा खड़ा करती है

सार्थक तर्क करने की शक्ति हमें न केवल प्रबुद्ध लोगों के बीच सम्मान दिलाती है, बल्कि हम खुद हर परिस्थिति में अपने आप को ज्यादा मज़बूत महसूस कर पाते हैं। लेकिन जब हमारे पास अपनी बात को उचित तरीके से कहने के लिए शब्दों का अभाव होता है, विचारों की कमी होती है, तब हम सामने वालों पर न केवल अर्नगल आरोप लगाते हैं, बल्कि उत्तेजित होकर अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश भी करते हैं। पिछले दो दिन की दो घटनाएं ऐसी हैं जिन पर शायद ये मेरे विचार ठीक बैठते हैं । पहली घटना केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी से जुड़ी है, और दूसरी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से। विदेश मंत्रालय के साल भर के कामों का ब्यौरा देते हुए सुषमा स्वराज का स्वभाव स्मृति जुबिन ईरानी को आईना दिखता है। तीन दिन पहले विदेश मंत्रालय की प्रेस वार्ता शुरू करते समय अधिकारियों ने कहा कि पत्रकारों को सवाल-जवाब करने के लिए एक घंटे का समय दिया जाएगा। जो पत्रकार सवाल पूछना चाहते हैं वो हाथ खड़े करें, लेकिन सभी का सवाल नहीं लिया जाएगा। लगभग सभी पत्रकारों ने हाथ खड़े कर दिए, इसी बीच सुषमा स्वराज ने कहा कि जितने भी हाथ खड़े हैं, सभी के लिए सवाल लिए जाएंगे । इसके बाद शुरू हुआ सवाल-जवाब का सिलसिला डेढ़ घंटे से ज्यादा चला, और विदेश मंत्री ने विनम्रता से सभी के सवालों को सुना और जवाब दिया। सवाल उनकी व्यक्तिगत जीवन से लेकर कूटनीतिक, राजनीतिक, विदेश दौरा और पीएम मोदी के कैबिनेट पर हावी रहने पर था, लेकिन सभी सवालों का सुषमा ने जितनी सहजता से और बिना अपने अधिकरियों से सलाह लिए जवाब दिया, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। अक्सर कूटनीतिक मामलों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है, ज्यादातर सवाल मंत्री से पूछे जाते हैं, और जवाब अधिकारी देते हैं। साथ समय की पाबंदी भी होती है। लेकिन यहां सब कुछ अलग था। 

दूसरी तस्वीर स्मृति जुबिन ईरानी की,
12वीं पास ईरानी छोटे परदे से निकलकर बीजेपी में शामिल हुईं और 2014 लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा जिसमें उन्हे अमेठी की जनता ने हार का ताज पहनाया। भारतीय लोकतंत्र के रंगमंच की यहीं सबसे बड़ी खूबी है कि यहां स्टेज पर मौका सबको मिल जाता है, चाहे वो कलाकार हो या ना हो।
ठीक स्मृति ईरानी को भी हार के बावजूद नरेंद्र मोदी कैबिनेट में सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला । दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर दिनेश सिंह से शुरु हुआ उनका विवाद आईआईटी, एनआईटी नागपुर, शिक्षा नीति, तमाम नियुक्तियों में सामने आया और आ रहा है। कल जो आज तक चैनल के कार्यक्रम में घटना घटी को ईरानी के तर्क करने की शक्ति, पूछे गए सवालों के जवाब के बजाए हंगामा, और अनर्गल आरोप लगाकर अपने आप को स्त्री और मंत्री के रुप में  श्रेष्ठ करने से ज्यादा कुछ नहीं है। जहां तक मैं जानता हूं, आज तक के अशोक सिंघल एक संजीदा पत्रकार हैं, उन्होने अपने कार्यक्रम में स्मृति ईरानी से ये सवाल पूछा कि ,
नरेंद्र मोदी ने आपके अंदर ऐसा क्या देखा जो आपको मानव संसाधन मंत्री बना दिया। स्मृति चाहती को सवाल को जवाब बहुत साधारण शब्दों में दे सकती थी । लेकिन इसके बजाए उन्होने हंगामा खड़ा करना ज्यादा मुनासिब समझा। उन्होने अशोक सिंघल के सवाल का इंटरपिटेशन ठीक वैसा किया जैसे कोई गंवार करता । उन्होने इस को खुद के स्त्री होने से जो दिया। और बार वहां मौजूद पब्लिक को सुनाया। जिस अंदाज में वो अशोक सिंघल के सवालों को जनता से बार-बार सुना रही थीं, उससे साफ दिख रहा है, कि मकसद स्टूडियो के अंदर अराजकता फैलाने कम कुछ नहीं था। दरअसल, ये सामान्य सी बात है कि जब हम अपने बचाव में उचित तर्क नहीं रख पाते हैं, तब हम हंगामा करते हैं, चिल्लाते हैं, और अराजकता का रास्ता अख्तियार करते हैं।  और यहीं मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी कर रही हैं। 2014 में तैयार हुए भक्तों का भी यहीं हाल है।

रविवार, 24 मई 2015

झीरम घाटी का नरसंहार


 25 मई 2013, दो साल पहले इसी दिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के झीरम घाटी में सबसे बड़ा नक्सली हमला हुआ था। चुनावी रैली के लिए जा रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले को नक्सलियों ने घेर लिया था और ताबड़तोड़ गोलीबारी में कांग्रेस के 29 नेता मारे गए थे। सलवा जुडुम से जुड़े महेंद्र कर्मा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल समेत 29 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
 नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल और उनके बेटे को बहुत ही बेरहमी से मारा था । उनके नफरत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होने महेंद्र कर्मा के शरीर को चाकुओं और गोलियों से छलनी कर दिया था। नंद कुमार पटेल के बेटे दिनेश की खोपड़ी को तरबूज की तरह जगह-जगह से चीर दिया गया था। मैं छत्तीसगढ़ में 11 महीने तक रहा उस दौरान की ये वहां की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी। हमले के बाद छत्तीसगढ़ का माहौल काफी खराब हो गया था। हमारे न्यूज़ रूम से लेकर सड़कों तक ये चर्चा हो रही थी कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजीत जोगी ने कांग्रेस के नेताओं को मारवाया है। कुछ अख़बारों ने अजीत जोगी की तरफ इशारा करते हुए ख़बरें भी छापी थी हालांकि किसी ने भी किसी का नाम नहीं छापा था। उस दौरान एक चर्चा ये भी थी कि रमन सरकार अगले 24 घंटे में गिर जाएगी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार है। बहरहाल, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और थोड़े दिनों बाद बात आई-गई हो गई। नक्सली हमले में जवानों के मारे की ख़बरें सुनने वालों को पहली बार अपनों के मारे जाने पर ग़म ज़रुर था, लेकिन वहां के लोग अब इसके भी आदि हो गए हैं।

अब बात जांच की

देश में पहली बार नेताओं पर इतने बड़े नक्सली हमले से छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरा देश स्तब्ध था। राज्य की रमन सरकार ने बिलासपुर हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय आयोग का गठन किया गया, जो अभी जांच कर ही रहा है । इधर, केंद्र की मनमोहन सरकार ने NIA को जांच सौंपा, शुरूआत में NIA ने बहुत तेजी से जांच की, हमारे संपादक महोदय से NIA ने करीब 2 घंटे से ज्यादा तक पूछताछ की और वीडियो फुटेज लिए, क्योंकि इस हमले की ख़बर सबसे पहले हमारे रिपोर्टर नरेश मिश्रा ने ही दी थी और वही एक मात्र ऐसा रिपोर्टर थे जो नक्सलियों की फायरिंग के बीच घटनास्थल पर पहुंचे थे। NIA की जांच चल ही रही थी कि फिर ये ख़बर उड़ी की अजीत जोगी का नाम हमले में आ रहा है, लेकिन कुछ दिनों बात ये भी ख़बर आई-गई हो गई, और आज तक NIA की जांच चल ही रही है। उम्मीद आगे भी चलती रहेगी।


इस घटना से जिस एक बात को लेकर मैं परेशान हुआ वो ये कि इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं की हत्या के बाद भी केंद्र ने ना ही नक्सलियों के खिलाफ कोई बड़ा अभियान चलाया, ना ही राज्य सरकार के खिलाफ कोई एक्शन लिया गया और ना ही अपनी 'सशक्त' एजेंसियों से मामले की एक समय सीमा के भीतर जांच करवाई गई ।