इंसान का
पलायन चाहे जिस वज़ह से हो
हमेशा दुखद होता है … आदमी कभी
बेहतरी के लिए पलायन करता है
तो कभी दुखी होकर पलायन कर
जाता है । दरअसल प्रवास इंसानी
ज़िन्दगी का एक हिस्सा सा बन
गया है । भारत ..जिस
देश की 70 प्रतिशत
से अधिक की आबादी खेती से
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप
से जुड़ी हुई है ..उस
देश में पिछले कुछ सालों से
लाखों किसान खेती को छोड़ चुके
है..देश में साल दर
साल किसानों की आत्महात्या
की आकड़ो में बढ़ोत्तरी होती
जा रही है । लेकिन सरकार GDP
के आकड़े के सहारे यह
दावा करती है कि देश में विकास
हो रहा है...वहीं
योजना आयोग सुप्रीम कोर्ट
में यह दलील देता है कि 32
रुपये कमाने वाले
ग़रीबी रेखा से उपर है ।
देश में
किसानों कि हालत कितना दयनीय
है इसका खुलासा साल 2001 कि
जनगणना से पता चलता है ...वर्ष
1991 और 2001 के
बीच 70 लाख से अधिक
किसानों ने जिनका मुख्यपेशा
किसानी था.. ने खेती
करना छोड़ दिया ...वहीं
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड
ब्यूरो के आकंडों की मानें
तो देश में 1997
से 2009
तक दो लाख 16
हज़ार 500
किसानों ने मौत को
गले लगा लिया ...
इससे ये अनुमान लगा
सकते है..जहां देश
में प्रतिदिन लगभग 2000 किसान
खेती छोड़ रहे है वही सैकड़ो
किसान आत्महत्या करने पर
मज़बूर हो रहे है...लेकिन
बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये दो
हज़ार किसान खेती छोड़कर जाते
कहां है .इसका जबाव
न सरकार के पास है न ही देश के
रोज़गार के आकड़े में मिलता
है …