बुधवार, 14 नवंबर 2012
क्यों उजाला करूं...
इस छोटे से रास्ते में
अंधेरा कर दिया मैंने कई जगह
कभी बेवजह
कभी स्वाभिमान से
कभी अपनी जरूरतों के लिए
सोचता हूं, आज क्यों न उजाला कर दूं
पर क्यों करूं
अंधेरा ग़लत तो नहीं है
मेरी आत्मा कहती है मुझसे।
मेरा स्वाभिमान आड़े आता है
रोड़ा बन जाता है, हर उस सफ़र में
जिसे मैंने पीछे छोड़ दिया
मै ख़ुद को कहता हूं, पीछे क्यों
बढ़ना तो मुझे आगे है
चाहे कुछ हो जाए, पर मेरा स्वाभिमान न डगमगाए
मैं इससे हर वक्त डरता हूं
पर अपने कर्तव्य पथ पर हर वक़्त अडिग रहता हूं।
रविचंद
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