सार्थक तर्क करने की शक्ति हमें न केवल प्रबुद्ध लोगों के बीच सम्मान दिलाती
है, बल्कि हम खुद हर परिस्थिति में अपने आप को ज्यादा मज़बूत महसूस कर पाते हैं।
लेकिन जब हमारे पास अपनी बात को उचित तरीके से कहने के लिए शब्दों का अभाव होता
है, विचारों की कमी होती है, तब हम सामने वालों पर न केवल अर्नगल आरोप लगाते हैं,
बल्कि उत्तेजित होकर अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश भी करते हैं। पिछले
दो दिन की दो घटनाएं ऐसी हैं जिन पर शायद ये मेरे विचार ठीक बैठते हैं । पहली घटना
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी से जुड़ी है, और दूसरी
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से। विदेश मंत्रालय के साल भर के कामों का ब्यौरा देते
हुए सुषमा स्वराज का स्वभाव स्मृति जुबिन ईरानी को आईना दिखता है। तीन दिन पहले
विदेश मंत्रालय की प्रेस वार्ता शुरू करते समय अधिकारियों ने कहा कि पत्रकारों को सवाल-जवाब
करने के लिए एक घंटे का समय दिया जाएगा। जो पत्रकार सवाल पूछना चाहते हैं वो हाथ
खड़े करें, लेकिन सभी का सवाल नहीं लिया जाएगा। लगभग सभी पत्रकारों ने हाथ खड़े कर
दिए, इसी बीच सुषमा स्वराज ने कहा कि जितने भी हाथ खड़े हैं, सभी के लिए सवाल लिए
जाएंगे । इसके बाद शुरू हुआ सवाल-जवाब का सिलसिला डेढ़ घंटे से ज्यादा चला, और
विदेश मंत्री ने विनम्रता से सभी के सवालों को सुना और जवाब दिया। सवाल उनकी व्यक्तिगत
जीवन से लेकर कूटनीतिक, राजनीतिक, विदेश दौरा और पीएम मोदी के कैबिनेट पर हावी रहने
पर था, लेकिन सभी सवालों का सुषमा ने जितनी सहजता से और बिना अपने अधिकरियों से
सलाह लिए जवाब दिया, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। अक्सर कूटनीतिक मामलों में
ऐसा कम ही देखने को मिलता है, ज्यादातर सवाल मंत्री से पूछे जाते हैं, और जवाब अधिकारी
देते हैं। साथ समय की पाबंदी भी होती है। लेकिन यहां सब कुछ अलग था।
दूसरी तस्वीर स्मृति जुबिन ईरानी की,
12वीं पास ईरानी छोटे परदे से निकलकर बीजेपी में शामिल हुईं और 2014 लोकसभा
चुनाव में राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा जिसमें उन्हे अमेठी की जनता ने हार का
ताज पहनाया। भारतीय लोकतंत्र के रंगमंच की यहीं सबसे बड़ी खूबी है कि यहां स्टेज
पर मौका सबको मिल जाता है, चाहे वो कलाकार हो या ना हो।
ठीक स्मृति ईरानी को भी हार के बावजूद नरेंद्र मोदी कैबिनेट में सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला । दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर दिनेश सिंह से शुरु हुआ उनका विवाद आईआईटी, एनआईटी नागपुर, शिक्षा नीति, तमाम नियुक्तियों में सामने आया और आ रहा है। कल जो आज तक चैनल के कार्यक्रम में घटना घटी को ईरानी के तर्क करने की शक्ति, पूछे गए सवालों के जवाब के बजाए हंगामा, और अनर्गल आरोप लगाकर अपने आप को स्त्री और मंत्री के रुप में श्रेष्ठ करने से ज्यादा कुछ नहीं है। जहां तक मैं जानता हूं, आज तक के अशोक सिंघल एक संजीदा पत्रकार हैं, उन्होने अपने कार्यक्रम में स्मृति ईरानी से ये सवाल पूछा कि , “नरेंद्र मोदी ने आपके अंदर ऐसा क्या देखा जो आपको मानव संसाधन मंत्री बना दिया” । स्मृति चाहती को सवाल को जवाब बहुत साधारण शब्दों में दे सकती थी । लेकिन इसके बजाए उन्होने हंगामा खड़ा करना ज्यादा मुनासिब समझा। उन्होने अशोक सिंघल के सवाल का इंटरपिटेशन ठीक वैसा किया जैसे कोई गंवार करता । उन्होने इस को खुद के स्त्री होने से जो दिया। और बार वहां मौजूद पब्लिक को सुनाया। जिस अंदाज में वो अशोक सिंघल के सवालों को जनता से बार-बार सुना रही थीं, उससे साफ दिख रहा है, कि मकसद स्टूडियो के अंदर अराजकता फैलाने कम कुछ नहीं था। दरअसल, ये सामान्य सी बात है कि जब हम अपने बचाव में उचित तर्क नहीं रख पाते हैं, तब हम हंगामा करते हैं, चिल्लाते हैं, और अराजकता का रास्ता अख्तियार करते हैं। और यहीं मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी कर रही हैं। 2014 में तैयार हुए ‘भक्तों’ का भी यहीं हाल है।
ठीक स्मृति ईरानी को भी हार के बावजूद नरेंद्र मोदी कैबिनेट में सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला । दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर दिनेश सिंह से शुरु हुआ उनका विवाद आईआईटी, एनआईटी नागपुर, शिक्षा नीति, तमाम नियुक्तियों में सामने आया और आ रहा है। कल जो आज तक चैनल के कार्यक्रम में घटना घटी को ईरानी के तर्क करने की शक्ति, पूछे गए सवालों के जवाब के बजाए हंगामा, और अनर्गल आरोप लगाकर अपने आप को स्त्री और मंत्री के रुप में श्रेष्ठ करने से ज्यादा कुछ नहीं है। जहां तक मैं जानता हूं, आज तक के अशोक सिंघल एक संजीदा पत्रकार हैं, उन्होने अपने कार्यक्रम में स्मृति ईरानी से ये सवाल पूछा कि , “नरेंद्र मोदी ने आपके अंदर ऐसा क्या देखा जो आपको मानव संसाधन मंत्री बना दिया” । स्मृति चाहती को सवाल को जवाब बहुत साधारण शब्दों में दे सकती थी । लेकिन इसके बजाए उन्होने हंगामा खड़ा करना ज्यादा मुनासिब समझा। उन्होने अशोक सिंघल के सवाल का इंटरपिटेशन ठीक वैसा किया जैसे कोई गंवार करता । उन्होने इस को खुद के स्त्री होने से जो दिया। और बार वहां मौजूद पब्लिक को सुनाया। जिस अंदाज में वो अशोक सिंघल के सवालों को जनता से बार-बार सुना रही थीं, उससे साफ दिख रहा है, कि मकसद स्टूडियो के अंदर अराजकता फैलाने कम कुछ नहीं था। दरअसल, ये सामान्य सी बात है कि जब हम अपने बचाव में उचित तर्क नहीं रख पाते हैं, तब हम हंगामा करते हैं, चिल्लाते हैं, और अराजकता का रास्ता अख्तियार करते हैं। और यहीं मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी कर रही हैं। 2014 में तैयार हुए ‘भक्तों’ का भी यहीं हाल है।