मंगलवार, 28 जून 2011

आम आदमी.....??



आम आदमी.....??
तमाम सारी चीजों की परिभाषाये जानने समझने के बाद भी आज तक मैं ये नही जान पाया की आम आदमी की परिभाषा क्या हैं..और गरीबी की परिभाषा क्या हैं? क्योकि हर स्तर पर दोनो को अलग अलग नजरिये से देखा जाता है। कई जगह पता किया पर कही से एक भी ऐसा जबाब मुझे नही मिला जो ये स्पष्ट परिभाषा दे सके की आम आदमी इस तरह का होता हैं...ऐसा होता हैं वैसा होता हैं ? जिसके मन में जो आता वह वैसी ही परिभाषा गढ़ता हैं ..मीडिया अलग अलग तरीके से परिभाषा बनाती हैं .सरकार अलग तरीके से परिभाषा बनाती ..समाजविदो कि नज़र में आम आदमी की परिभाषा अलग होती हैं..पर इस देश में आम आदमी की कोई एक परिभाषा नही गढ़ी गई हैं...एक चीज़ और अपने देश में सुना हैं गरीब भी रहते हैं...तो गरीब आदमी और आम आदमी मे फ़र्क क्या हैं ? देश के तमाम बढे अर्थशास्त्रीयों ने देश में गरीबी के उपर अपनी रिपोर्ट दी हैं पी सेन गुप्ता कहते हैं कि देश में 83.7प्रतिशत लोग गरीब हैं ..सरकार कहती हैं कि देश में 42 करोड़ लोग गरीब हैं ..भारतीय जनसंख्या जनगणना विभाग कहता हैं कि भारत में 37व करोड़ गरीब रहते हैं ..किसकी माने किसकी बातो पर विश्वास करे ..जरा गौर से एक बात सोचिए कि जिस देश में सरकार को खुद पता नही हैं कि उसके देश में उसके कितने प्रतिशत नागरिक गरीब हैं या अमीर या हैं फिर जिस देश में गरीबी के आकड़े के उपर इतनी ज्यादा विवाद है, फिर हम किससे आशा कर सकते हैं कि वह कोई आम आदमी और गरीबी के बारे में अलग अलग परिभाषा तय करने कि कोशिश करें।दरअसल भारत जैसा विकास का भ्रामक चेहरा किसी और देश में देखने को नही मिलता हैं ..यूएनडीपी कि रिपोर्ट को देखो तो भारत में 70 करोड लोग भूखमरी के शिकार हैं मतलब की देश में हर पॉच में से एक व्यक्त कुपोषित है। इंटरनेशनल हंगर इंडेक्स में भारत का 66 वॉ स्थान हैं। यहॉ तक की भारत के कई राज्य तो कई अफ्रीकी  अति पिछड़े देशो से भी ज्यादा गरीब हैं। इन सभी आंकड़ों को देखते हुये अब ये भी जानने की कोशिश करते हैं आम आदमी और गरीबी क्या हैं ..
गौरतलब हैं की हमारे देश में टैक्स में छूट दी जाती भिन्न भिन्न आय पर लोगो को भिन्न तरीके से छूट मिलती हैं .सबसे कम एक लाख 60 हजार से अधिक पर और तीन लाख से कम पर 10 हजार का टैक्स सरकार लेती हैं ...साल दर साल सबसे निचले स्तर पर टैक्स वसूलने व आम लोगो राहत देने के लिये आय की उपरी सीमा बढ़ा दी जाती हैं...सरकार कहती हैं की हमने आम लोगो को टैक्स में राहत दिया हैं ...दरअसल देश कि जनता जानना ये चाहती हैं कि आखिर आम लोग कौन हैं क्योंकि देश में जब 80 प्रतिशत से ज्यादा 20 रुपये पर रोजाना अपना गुजारा करते हैं मतलब की  साल में  कुल 7200 रुपये ही कमा पाते हैं ...आखिर जब देश कि जनता कि 80 प्रतिशत आबादी केवल 7200 रुपये पर गुजारा करती हैं तो किस आम आदमी के टैक्स में छूट दिया जाता ...तेल के दाम साल में 10बार से ज्यादा बढ़ा दिये गये सरकार की तरफ से हवाला दिया गया कि तेल कंपनीयो को घाटा हो रहा हैं ....लेकिन आकड़े उठाकर देखा जाये तो पिछले पांच सालो में किसी भी कंपनी को घाटा नही बल्कि मुनाफा हुआ..देखिये एक विश्लेषण....   
 वर्ष 2007
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IOC को 7525 करोड़ रुपये मुनाफा
HPCL को 406 करोड़ रुपये का मुनाफा
BPCL को 129 करोड़ रुपये का मुनाफा
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वर्ष 2008
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IOC को 6963 करोड़ रुपये मुनाफा
HPCL को 1268 करोड़ रुपए का मुनाफा
BPCL को 1806 करोड़ रुपये का मुनाफा
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वर्ष 2009
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IOC को 2950 करोड़ रुपये का मुनाफा
HPCL को 726 करोड़ रुपए का मुनाफा
BPCL को 1581 करोड़ रुपये का मुनाफा
 वर्ष 2010
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IOC को 10221 करोड़ रुपये का मुनाफा
HPCL को 575 करोड़ रुपये का मुनाफा
BPCL को 736 करोड़ रुपये का मुनाफा
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 वर्ष 2011
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IOC को 7445 करोड़ रुपये का मुनाफा
HPCL को 1539 करोड़ रुपये का मुनाफा
BPCL को 1547 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ........
अब बताइये ,इसके बावजूद भी प्रत्येक इंधन का रेट बढ़ा दिया गया ....और कहा जा रहा हैं कि हम
महंगाई से आम आदमी को राहत देने के लिये हर संभव उपाय कर रहे हैं.. तो सवाल यो उठता हैं कि आम आदमी के लिये तमाम सारे उपाय किये जा रहे हैं...पर 80 प्रतिशत गरीबो के लिये क्या किया जा रहा हैं ???
              आम आदमी के लिये हर प्रकार से राहत देने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं? ....और गरीबो को मिटाने का प्रयास किया जा रहा हैं ....हॉलाकि भारत में निचले स्तर पर इंसानो की एक और कैटगरी रहती जिसे किसान कहते हैं ...निचले स्तर पर इसलिये कि इनकी परवाह अब कोई नही करता तथाकथित संगठन हैं तो केवल राजनीतिक रोटी सेकने के लिये इनका इस्तेमाल करते हैं ...देश में किसानो कि हालत क्या हैं इस पर एक रिपोर्ट देखिये .......
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों के अनुसार पूरे भारत में 2009 के दौरान 17368 किसानों ने आत्महत्या की है.किसानों के हालात बुरे हुए हैं,
इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसानों की आत्महत्या की ये घटनाएँ, 2008 के मुकाबले 1172 ज़्यादा है. इससे पहले 2008 में 16196 किसानों ने आत्महत्या की थी। जिन राज्यों में किसानों की स्थिति सबसे ज़्यादा खराब है उनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं....जबकि ये राज्य खनिज पदार्थों से भरपूर हैं और इन्ही राज्यों कि जमीनो से कमाकर देश कि तमाम कंपनियों के मालिक देश के सबसे धनी लोगो में गिने जाते हैं । किसानों की आत्महत्या की कुल घटनाओं में से 10765 यानी 62 प्रतिशत आत्महत्याएँ इन पाँच राज्यों में ही हुई है.इन पाँच राज्यों के अलावा सबसे बुरी ख़बर तमिलनाडु से है. वर्ष 2009 में यहाँ दोगुने किसानों ने आत्महत्या की. वर्ष 2008 में यहाँ 512 किसानों ने आत्महत्याएँ कीं जो वर्ष 2009 में 1060 पर जा पहुँची.पिछले दस वर्षों से किसान आत्महत्याओं के आंकड़ो में अव्वल रहने के लिए बदनाम महाराष्ट्र 2009 में भी सबसे आगे रहा, हालांकि यहाँ आत्महत्या की घटनाओं में कमी आई है.महाराष्ट्र में 2009 के दौरान 2872 किसानों ने आत्महत्या की जो कि 2008 के मुकाबले 930 कम है.इसके बाद कर्नाटक में सबसे ज़्यादा 2282 किसानों ने आत्महत्याएँ की. केन्द्र शासित प्रदेशों में पॉन्डिचेरी में सबसे ज्यादा 154 किसानों ने आत्महत्या की.पश्चिम बंगाल में 1054, राजस्थान में 851, उत्तर प्रदेश में 656, गुजरात में 588 और हरियाणा में 230 किसानों ने आत्महत्या की.राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों के अनुसार 1997 से 2009 तक भारत में दो लाख 16 हज़ार 500 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.कुल 28 राज्यों में से 18 राज्यों में किसान आत्महत्याओं की संख्या में इज़ाफा हुआ। इन ऑकडो को देखते हुये इस देश की बाजारबादी अर्थव्यवस्था पर तरस आता हैं टप्पणि करने को। पर हमें एक पैमाना तो तय करना होगा ही आम आदमी जिसमे परिभाषित हो गरीब भी हो और किसान भी ....अभी तक जो कैलोरी और तथाकथित आय के पैमाने पर गरीबो को परिभाषित किया गया हैं उसका आधार 1975 के दशक में तौयार किया गया था । आज भारत के 80% को छोड़कर पूरा इंडिया आगे निकल चुका हैं तो जरुरत हैं ...की आम आदमी के लिये, गरीबो के लिये, किसानो के लिये, एक नयी परिभाषा गढ़ी जाये .....ताकि नये हिन्दुस्तान की पीढ़ी हर एक का परिभाषा जानकर वह खुद को अपने को उस कैटगरी में रखने की कोशिश कर सके.......ये इसलिये.. कि इस देश से आम आदमी...और गरीबी कभी जाने वाली नही हैं.। पर आज लिखते समय एक खबर मिली हैं कि चव्वनी की विदाई हो गयी हैं बेचारी चव्वनी अपने आप को नही समेट सकी लोगो के साथ ...शायद गरीब भी कभी इस देश से चले जाये य़ा इतिहास में सिमट जाये....डर लगता हैं।
( ऑकडे बीबीसी और इंडियान्यूज के बिजनेस एडिटर सुरेश मनचंदा से लिया गया हैं उनके प्रति मेरा आभार हैं )   
    

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