शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

सम्मेलनों में फंसा जैव विविधता संरक्षण

हम जैव विविधता संरक्षण के लिए 60 मिलियन डॉलर देने की घोषणा करते है, हमें ये बताते हुए खुशी है कि हमारी सरकार ने जैव विविधता को बचाने के लिए कई सारे उपाय किए है...जिसमें मनरेगा जैसी योजनाएं प्रमुख है...भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ये बातें अक्टूबर 2012 में हैदराबाद में आयोजित विश्व जैवविविधता सम्मेलन में कही थीं । दुर्भाग्य से बायोडायवर्सिटी में सबसे ज्यादा संपन्न हमारे देश में तमाम नृजातीय प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। इसे आप आधुनिकता की हवस कहे या प्रकृति की मार, जिस समय हैदराबाद में विश्व समुदाय जैव विविधता को बचाने की खातिर माथापच्ची कर रहा था, उसी समय असम के काजीरंगा नेशनल पार्क में कई गैंडे और पशु-पक्षी प्राकृतिक आपदा के साथ-साथ शिकारियों के शिकार हो गए। इसे विडंबना कहे या परंपरा.... भारत की पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने काजीरंगा में आए प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए सिर्फ एक करोड़ रुपए देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली....बिना किसी दूरदर्शी नीति और योजना के इसी तरह सरकार करोड़ों रूपए लुटा देती है..... लेकिन ये कोशिश जैव विविधता को बचाने के लिए नाकाफी साबित हो रही है...... हैदराबाद में जैवविविधता सम्मेलन एक ऐसे समय आयोजित किया गया , जब दुनियाभर की जैविक प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है....लेकिन इस बाजारू दुनिया का प्रकृति के प्रति नजरिया देखिए.... यहां भी कार्पोरेट जगत की तरह केवल पैसे जुटाने की चर्चा हुई...जिसे तमाम गैर सरकारी संगठन, औऱ दुनियाभर की सरकारों के रहनुमा मिलकर लूट सकें। आधुनिकीकरण की शुरूआत से ही इंसानों ने प्रकृति के उपर बहुत जुर्म ढाए हैं.....और धीरे धीरे करके आज जब हालात बेकाबू हो चुके हैं तो फिर उसे बचाने के लिए दुनियाभर के पर्यावरणविद और सामाजिक संगठन सम्मेंलनों की रस्म अदायगी करके अपनी चिंता जाहिर कर रहे हैं...अगर इस संकट पर नजर डालें तो...धरती से खत्म हो रही प्रजातियों में 41 फीसदी उभयचर, 33 फीसदी प्रवाल, 25 फीसदी स्तनपायी, 13 फीसदी पक्षी और 23 फीसदी कोनफर वृक्ष हैं....बात अगर भारत के परिप्रेक्ष्य में करें तो, यहां की कुल आबादी लगभग एक अरब बीस करोड़ है, ...जो कि विश्व जनसंख्या का लगभग 18 फ़ीसदी है... इस देश में इंसान और वन्य-जन जीवन के लिए विश्व भूमि का 2.4 हिस्सा ही उपलब्ध है... इस स्थिति में दोनों के बीच संघर्ष होना लाजिमी ही है... और ज़ाहिर है कि इस लड़ाई में कहीं ना कहीं तात्कालिक जीत इंसानों को ही मिल रही है....हालांकि ये भी उतना ही सही है कि इसके बिना लंबे समय तक इंसानी जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती...पिछले दशक में भारत ने कम से कम पांच दुर्लभ जानवर लुप्त होते देखे हैं... इनमें इंडियन चीता, छोटे क़द का गैंडा, गुलाबी सिर वाली बत्तख़, जंगली उल्लू और हिमालयन बटेर शामिल है.. हालांकि देखा जाए तो भारत ने अपने जैव विविधता को बचाने के लिए कोशिश जरूर की है...सरकार ने देश का लगभग 5 फिसदी भौगोलिक हिस्से को सुरक्षित क्षेत्र में रखा है...बाघों की विलुप्ति होती संख्या पर तमाम समाजिक संगठन और पर्यावरणविद् जब सामने आए , तब सरकार ने कई योजनाओं के साथ लोगों में जागरुकता भी लाया...परिणामस्वरूप जहां 2006 में सिर्फ़ 1411 बांघ थे, वहीं 2011 में देश भर में 1706 वयस्क बाघ गिने गए थे।...पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार भारत इस समय जैव विविधता पर दो अरब डॉलर ख़र्च कर रहा है...परंतु ये तमाम योजनाएं बिना किसी दूरदर्शी नीति के खोखली साबित हो रही है... विश्व समुदाय की तमाम कोशिशों के बावजूद इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर ने चेताया है कि इस समय करीब 1 हजार दुर्लभ प्रजातियां ख़तरे में हैं... जबकि 2004 में यह संख्या केवल 650 थी...विश्व धरोहर को गंवाने वाले देशों की शर्मनाक सूची में भारत चीन से ठीक बाद सातवें स्थान पर है...जानकारियों के मुताबिक, 5,490 स्तनधारी प्रजातियों में से हर पांचवीं प्रजाति लगभग विलुप्त होने के कगार पर हैं। जाहिर है, हमारी कोशिशों में चूक हो रही है। ...और अगर जल्द ही कड़े कदम नहीं उठाये गये तो इसके गंभीर परिणाम देखने को मिलेंगे