मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

बड़ा इरींटेटिंग था यार....



तमाम सारे अंग्रेजी के शब्द है जिनका मतलब मुझे पता नहीं, बहुत साफ कहूं तो अंग्रेजी कामचलाऊ ही आती है, हां इतनी जरुर आती है कि अपना काम चल जाता है। पर मुझे कई शब्दों का मतलब पता नहीं होता ,काफी सारे दोस्त है, अधिकतर साथ रहते हुए बातों - बातों में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करते है, कई शब्दों का मतलब पता होता है तो बोल बतियां लेते है, कईयों के मतलब पता नहीं होते तो सर हिला के काम ख़त्म कर लेते है। हिन्दी की हालत भी कुछ ठिक नहीं है लिखता हूं तो व्याकरण कि बहुत सारी ग़लतिया सामने आती है ,पर सीख रहा हूं । उम्मीद है कि बहुत जल्द ही सुधार कर लूंगा।
ये तो बातें अपने ज्ञान के बारें में थी कि मुझे क्या और कितना आता है। अब कुछ उन समाजिक पहलुओं के बारे में जिसका नाता मेरे जीवन से रहा है जिससे मैनें बहुत कुछ सीखा समझा और जाना है। पिछले 7 सालों से दिल्ली में रह रहा हूं अनेक लोगों के साथ और अनेक परिस्थितियों के बीच रहा । जिन परिस्थितियों के बीच रहा जिन हालातों का सामना किया वह वाकई में मेरे लिए क़ाफी ज़रुरी थी । दिल्ली में काफी मित्र बनें । कुछ साथ है तो कुछ.. कुछ पल के लिए ही साथ थे । कोई शहरी था कई कोई गांव का मिला। अब बात अपने स्वभाव की, तो अपना स्वभाव हमेशा से गंवई रहा है, इसीलिए मै बहुत से दोस्त जो शहरी थे उन्हे बहुत कम पसंद था। अधिकतर को शिकायत रहती थी की ये बहुत इरीटेट करता है। हांलाकि कोई मुझसे नहीं कहता था लेकिन मुझे पता चल जाता था। कि ऐसा किसी ने कहा है।
किसी के साथ चलना चाहते है तो आपको कई च़ीजो का ध्यान रखना पड़ता है । पर मेरा ये भी मानना है कि आप एक परफेक्ट इंसान नहीं हो सकते कोई न कोई कमी ज़रुर रह जाती है । हां हम अपने हिसाब से सोच सकते है ..कि हम सहीं है, पर ये ज़रुरी नहीं की जिसके साथ हम रहते है उसे हमारी हर आदते पसंद हो । वैसे एक बात जो मैं सोच समझ पाता हूं कि हमें हर वक़्त उसी तरीक़े से रहना चाहिए जैसे हम अपने आप को कंफरटेबल महसूस कर सके । दिखावे के चक्कर में बहुत सी ऐसी आदतों को हम धारण कर लेते है जो हमारी व्यक्तित्व के लिए सही नहीं होती । पर हम है तो एक मनुष्य, कई बार होता क्या कि है कि हम जहां पर जाते हमें उसके हिसाब से ढलना भी पड़ता है। इसीलिए भी ढलना पड़ता है कि वो समय ,परिस्थिती या यूं कहें कि वक़्त की नज़ाकत की मांग होती है । और जब हम माहौल के हिसाब से हर जगह अपने आप को फिट कर लेते है तो वो हमारे लिए भी सही होता है।
कुल मिलाकर आप हमेशा अपने हिसाब से रहे, अपनी ज़िन्दगी को अपने हिसाब से जिए पर जब आप दूसरों के साथ रहे उनकी भावनाओं की भी कद्र करना सीखें ,ताकि कोई आपके साथ वक़्त गुजारने के बाद ये न कह सके कि की यार वो तो बड़ा इरीटेटिंग इंसान था।