रविवार, 1 जुलाई 2012

लोक प्रशासन का बदलता आयाम

वर्तमान वैश्वीकरण, उदारीकरण, और भूमंडलीकरण के दौर में लोक प्रशासन का स्वरूप बदला है..उस बात से कई इनकार नही कर सकता...हम एक ऐसे दौर में जी रहे है जहां सरकार अपने नागरिकों से जुड़े तमाम सेवाओं, कार्यों को न केवल प्राइवेट कंपनियों को सौंपती जा रही है ...बल्कि सरकार वैश्विक कंपनियों के दबाव में एक तरह से इन कंपनियों को लोगों पर शासन करने तक का अधिकार दे दिया। आज हमारी जरूरते क्या है ..इस बात की जिम्मेदारी सरकार नहीं बल्कि निजी कंपनिया तय करती है ...1990 - 91 में सोवियत संघ के विघटन के बाद एक क्षत्र रूप से अमेरिका का वर्चस्व स्थापित हो गया...पूरे विश्व में निजीकरण का बोलबाला हो गया..ये मान लिया गया है कि अब समाजवादी व्यवस्था की दुनिया में जगह नही है...भारत इन वैश्विक घटनाओं से अछूता नही रहा ….1990 के बाद देश में हुए आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के एलान के बाद एक नई आर्थिक व्यवस्था ने जन्म लिया..लाल फिताशाही के अंत के बाद देश में वैश्विक कंपनियों की भरमार हो गई...सरकार धीरे धीरे अपने नागरिकों से जुड़े तमाम क्षेत्रों से पीछे हटती गई....और इन क्षेत्रों में प्रायवेट कंपनियों की घुसपैठ होती गई। विकासशील देशों पर विश्व बैंक और अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोश जैसी संस्थाओं का प्रभाव बढ़ता गया...औऱ वर्तमान में ये संस्थायें विकासशील देशों की राजनीति दिशा भी तय करने लगी है। अब जनता को ये बताया गया कि .. सरकार आपकों बेहतर सेवा देने के लिए पीपीपी मॉडल पर काम करेगी ...नई व्यवस्था के तहत लोगों को सार्वजनिक निजी भागीदारी का सहारा दिया जाएगा..। सरकार अपने नागरिकों से जुड़े हर एक क्षेत्र में पीपीपी मॉडल को अपनाया..नतीजन नौकरशाही का स्वरूप तो बदला ही ..साथ ही पारंपरिक प्रशासन का स्वरूप भी बदला, हालांकि जहां एक तरफ नौकरशाही को जनता की सेवा से दूर कर निजी कंपनियो को जिम्मेदारी दी गई..वही नौकरशाही का स्वरूप भी बदला...और जिम्मेदारिया भी, अब जब हर क्षेत्र निजी क्षेत्र के हवाले है तो ऐसे में नौकरशाही के उपर अहम जिम्मेदारी व्यवस्था की देखभाल करना हो गया, क्या निजी क्षेत्र जनता की उन तमाम आवश्कताओं को पूरा कर रहे पा रहे है। जिस उद्देश्य से उन्हे ये काम सौंपा गया था । क्या जनता उनके काम से संतुष्ट है. इत्यादि ये सभी जिम्मेदारियां वर्तमान नौकरशाही निभा रही है । इस दौर में एक और क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ जिसे संचार क्रांति कहते है। संचार क्रांति ने भारत ही नही उन तमाम विकासशील देशों की सरकार की जनता के प्रति नज़रिए में बड़े स्तर पर बदलाव किया । संचार क्रांति के फलस्वरूप सभी लोकतांत्रिक देशों प्रशासन के स्तर पर व्यापक बदलाव हुआ । जिसे अब सुशासन कहते है । पिछले कुछ दिनों में सुशासन की अवधआरणा का बहुत विस्तार हुआ है।भारत जैसे देशों में सूचना के अधिकार के कारण शासन व्यावस्था में वृहद स्तर पर परिवर्तन हुआ है। एक तरफ प्रशासन जहां सूचना क्रांति के कारण लोगों की समस्यओं का को तेजी से निपटाने की हरसंभव प्रयास कर रह है। वही दूसरी तरफ जनता अपने समस्याओं को लेकर जागरूक हुई है । यही कारण है कि तमाम नवीन प्रशासनिक अवधारणाओं का सृजन हुआ है । जैसे ग्रामीण समस्याओं को सुलझाने के लिए चौपाल , - प्रशासन, मेगा अदालते, आदि । प्रशासन के बदले स्वरूप ने कई क्षेत्रों में अत्यंत प्रभावशाली भूमिका भी निभाई है। दिल्ली जैसे महानगरों में जन भागीदारी योजना के फलस्वरूप तमाम स्थानीय समस्याओं को सार्वजनिक निजी के स्तर पर सुलझाया जा रहा है ।
1990 में हुए लाल फिताशाही के अंत के बाद जब नौरशाही के पर्दा के बाहर कर होकर काम करने लगी, तो एक नए राज व्यवस्था की शुरूआत हुई जिसमें लोक प्रशासन का स्वरूप बदला । जिसे आज नई लोक व्यवस्था के रूप में भी जाना जात है ।