गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

हिम्मत

पंकज की तबीयत रात से बहुत ख़राब है। देर रात काम करके आया था। सुबह सोकर जल्दी उठा। कुछ देर तक सोचता रहा की डॉक्टर के पास जाऊं या ड्यूटी पर जाऊं। काफी देर तक सोचने के बाद वो निर्णय लिया की डॉक्टर के पास जाऊंगा। पंकज अपने कमरे से निकला, गली की सीध वाले रास्ते के सामने ही मेन सड़क थी। रोड पारकर हल्की सी सांस लेते हुए वो बस स्टैंड पर बैठ गया। अस्पताल जा रहूं कहीं ज्यादा तबीयत न खराब हो जाए, बड़ी बीमारी निकल गई तो क्या करूंगा। घर में दो छोटे बच्चें है। बस स्टैंड पर बैठकर पंकज ये तमाम बाते अपने मन में सोचने लगा। तभी बस आई वो बैठ गया। अस्पताल पहुंचने के बाद उसने डॉक्टर से चेकअप करवाया। पंकज अभी फिलहाल ये दवाएं ले लो, तुम कल फिर आ जाना, डॉक्टर ने पंकज से कहा। अस्पताल से निकले के बाद दोपहर के दो बज गए थे। पंकज बिना कुछ खाएं पिए अपने फैक्ट्री लेदर की फैक्ट्री में वो काम करता था। दवाएं खाने के बाद उसकी तबीयत थोड़ी ठीक थी। उसने फिर रात के दो बजे तक काम किया और अपने कमरे पर आ गया। सुबह उसे जल्दी उठना था। और अस्पताल जाना था। लेकिन रिपोर्ट की चिंताओं ने रात भर उसके नींद में खलल डाला। सोचते-सोचते सुबह हो गया। पंकज फिर तैयार होकर अस्पताल चला गया। मरीजों की लाइन में उसका नंबर चौथा था। कुछ देर बाद डॉक्टर ने पंकज को बुलाया। अंदर से डरा सहमा पंकज डॉक्टर के केबिन में जाकर खड़ा था। अरे बैठ जाओ इतने डरे क्यों हो, डॉक्टर ने पंकज से कहा। पंकज बैठ गया। डॉक्टर ने पंकज से पूछा क्या काम करते हो, पंकज ने कहा ललल लेदर की फैक्ट्री में काम करता हूं। क्या बहुत ज्यादा काम करना पड़ता है। अबकि बार पंकज डर गया। कुछ नहीं बोला। ....फिर डॉक्टर ने कहा पंकज तुम्हे ब्लड कैंसर हो गया है। थैलेसिमीयां। काटों तो खून नहीं ऐसी हालत हो गई पंकज की। उसे अपेन उपर विश्वास नहीं हुआ उसने फिर डॉक्टर से पूछा, सर मुझे क्या हो गया है। पंकज तुम्हे ब्लड कैंसर हो गया है, डॉक्टर ने पंकज कि ओर देखते हुए कहा। पंकज की ऑखों में आसू थे। उसने डॉक्टर कहा कि सर अब क्या कर सकता हूं। नाउम्मीद भरी सांत्वना देते हुए डॉक्टर ने पंकज से कहा चिंता मत करों इलाज होगा ठीक हो जाएगा। एक तरह से डॉक्टर की उस कुर्सी पर बैठे-बैठे पंकज बेहोश सा हो गया था। उसे सूझ नहीं रहा था कि वो करे तो क्या करे। दिवाल के सहारे एक अब एक नई जिंदगी जीने को सोचते हुए वो खड़ा हुआ। पंकज तुम चिंता करों कुछ पैसे लगेंगे भर्ती हो जाओं इलाज होगा ठीक हो जाओगे। डॉक्टर पंकज तो इस तरह से सांत्वना दे रहे थे, जैसे कोई मुरझाएं फूल को कह रहा हो कि तुम फिर जेठ की लिली की तरह खिल उठोगे। पंकज ठहरा एक मज़दूर आदमी उसको अभी महीने की तनख्वाह भी नहीं मिली थी। दूसरे वो दिल्ली के गोविंदपुरी में एक किराए की मकान में रहता था। बेचारे के पास अस्पताल में भर्ती होने के लिए पैसा नहीं था। वो अस्पताल से घर से चला आया। दूसरा कोई उपाय भी नहीं था उसके पास, हमारे देश में जो पहले पैसा दो फिर इलाज लो का संद्धांत है। क्योंकि उसकी पर्ची पहले कटनी थी। फिर जाकर वो कही अस्पताल में भर्ती हो पाता। सूरज ढल रहा था, शाम के करीब साढे छह बज रहे थे। छत पर बैठे बैठे वो तमाम सारी बाते सोचने लगा। इलाज कहां से होगा इस बारे में नहीं , बल्कि इस बारे में कि उसे दो बच्चे है, पत्नि है, दोनों बच्चे अभी छोटे है, बड़ा वाला करीब आठ साल का है, और दूसरा करीब पांच साल का। उसका पूरा परिवार गावं में रहता है और दिल्ली शहर में अकेला। मै नहीं रहा तो मेरे भाई ज़मीन हड़प लेगे, बीवी बच्चे कहां रहेंगे। पंकज ये तमाम सारी बात सोचने लगा। रात अंधेरा हो चुका था, सर्दी का महिना था। ओस गिरना शुरू हो गया था। अब वो छत से नीचे चला आया। काफी देर तक सोचना लगा क्या बना कर खाऊं, सुबह से पंकज कुछ खाया नहीं था, उसके कमरे में आटा और चावल तो था। लेकिन सब्जी नहीं थी, सब्जी के लिए बाजार जाना पड़ता। एक तो पहले से ही उसकी तबियत खराब, मन मारकर पंकज बाजार नहीं गया। स्टोव जलाया और तीन रोटी बनाई, थोड़ी देर बाद प्याज और नमक के साथ रोटी खा लिया। नींद तो आ नहीं रही थी। कैसे-कैसे बेचारा फर्श पर चद्दर बिछाकर लेट गया। रात भर सो नहीं पाया। कभी उठकर बैठ जाता, तो कभी फिर सो जाता था। रात भर यही करते करते सुबह हो गई। सुबह के नौ बज चुक है, उसे काम पर जाना है। लेकिन पंकज जब ये सुना है कि उसे कैंसर है, उसकी तबियत मानसिक रूप से पहले ज्यादा ख़राब हो गई है। अब वो हर वक्त काम करते हुए कराहता रहता है। घर में उसकी कोई बड़ी आमदनी नहीं है जिससे वो घर से पैसे मंगाकर अपना इलाज करवा सके। पंकज के तीन भाई है तीनों उसकी शादी के बाद से ही अलग रहते है । मतलब अब उसे अपने दोनों बच्चों और बीवी के साथ उसे अपने इलाज का भी खर्च उठाना है। कहानी जारी है...