मंगलवार, 19 जुलाई 2011

हिन्दी मैं परायी हूं


  हिन्दी मैं परायी हूं
यदि मैं उत्तर प्रदेश ,बिहार या भारत के किसी अन्य राज्य का निवासी हूं और मैं सामाजिक ,
सांस्कृतिक,क्षेत्र में कोई बढ़ा कार्य करता हूं..जिससे हमारे देश का नाम रोशन होता हैं, और
इसके बाद मैं कहता हूं की मुझे भारतीय होने पर गर्व हैं ..तो हो सकता हैं..सभी भारतीय
मेरी इस बात की प्रसंशा करें..परन्तु ऐसा भारत के ही एक राज्य महाराष्ट्र में सम्भव नहीं हो
सकता ..यदि मैं वहां का निवासी हूं और मैं कहता हूं की मुझे भारतीय होने का गर्व हैं तो हो
सकता हैं बाल ठाकरे मुझे फांसी की सजा दे दें ...पर धन्य हैं अम्बेडरक जी का जिन्होने भारतीय
संविधान में लिखा कि सभी भारतीय एक समान हैं ...एक महान खिलाड़ी मीडिया के सवालो
का जबाव देते हुये कहता हैं कि “सर्वप्रथम मुझे अपने भारतीय होने पर गर्व हैं... इसके पश्चात
मैं एक मराठी हूं...”। इस अभिव्यक्ति पर उस खिलाड़ी को मराठी मानुषो के अभद्र शब्दो का
शिकार होना पड़ता हैं..
संयोग हैं कि वह शख्स सचिन थे जिनकी केवल आलोचना भर की गई..यदि वह एक आम
इंसान होता तो.. ठाकरे के लड़के उसे डंडे मार मार के महाराष्ट्र से बाहर भगा देते ..क्योंकि वह
अपने आप को मराठी न कहकर वह अपने आप को एक भारतीय बता रहा हैं.. जो की ठाकरे
के नज़रो में एक गुनाह हैं ..हद तो तब और हो जाती जब ये मराठी मानुष महाराष्ट्र की विधान
सभा में हिन्दी में शपथ लेते एक विधायक के उपर हमला कर देते हैं.....और अमिताभ जैसे भारतीय
फिल्मो के नायक को महाराष्ट्र छोड़ने की धमकी देते हैं ..क्योकि ये दोनो भारतीय हिन्दी भाषी
राज्यो से हैं तथा महाराष्ट्र में भी हिन्दी बोलते हैं ...
आज हिन्दी भाषी क्षेत्रो के लोग महाराष्ट्र में अपने आपको पराया समझते हैं ..कभी ये मराठी
मानुष आम रिक्शे वाले को .तो कभी एक टैक्सी ड्राइवर को ..तो कभी एक आम आदमी को
जो हिन्दी भाषी राज्यो से हैं उस पर अत्याचार करते हैं ..लेकिन जब ठाकरे की मुम्बई आंतकवादियो
से घिर जाती हैं तो हिन्दी भाषी क्षेत्रो से जाकर वीर सैनिक अपनी जान कि बाजी लगाकर ठाकरे
कि मुम्बई को बचाते हैं ..अभी भी समय हैं,राजठाकरे को यह सोचना चाहिये कि महाराष्ट्र ठाकरे
कि अमानत नहीं ,बल्कि वह भी भारतीय गणराज्यो में से एक राज्य हैं ..जहां कोई भी भारतीय
जाकर बस सकता हैं ..रोजगार प्राप्त कर सकता हैं ..स्वतंत्र अभिव्यक्ति कर सकता हैं ...
ठाकरे संर्कीण क्षेत्रीय राजनीत के रोगी हैं ..उन्हे क्षेत्रीय राजनीत से उपर उठकर देश के बारे
में सोचना चाहिये ...न कि हिन्दी भाषी क्षेत्रो के लोगो पर अत्याचार करके अपनी राजनीत
की रोटी सेकनी चाहिये ....
आजादी के 63 वर्ष बाद भी आज जो दुर्दशा हिन्दी भाषियो की दूसरे राज्यो में जो रही हैं ..
वही दुर्दशा आज हिन्दी भाषा की भी हो रही हैं ...63 वर्ष बाद भी हिन्दी हमारी पूर्ण भाषा बनने
को तरस रही हैं ..आज तक हिन्दी राष्ट्र भाषा नहीं बन सकी इसकी सबसे बड़ी वजह
संर्किण क्षेत्रीय राजनीत विचारधारा रही हैं ..यह अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिये यदि मैं ये
कहूं कि की हिन्दी का धीरे धीरे प्रशासनिक ,सामाजिक ,सांकृतिक, सांस्कृतिक क्षेत्रो से
प्रचलन समाप्त होता जा रहा हैं ....भारत में बेरोजगारी बढ़ने का कारण हिन्दी की उपेक्षा
भी रही हैं ..वर्तमान में भारतीय संस्कृति का हनन होता जा रहा हैं व पश्चिमी संस्कृति
अपना प्रभुत्व स्थापित करती जा रही हैं ...संप्रभुत्व भारतीय जनमानस को भारतीय सरकार को यह चिंतन करना चाहिये कि जिस देश की संस्कृति नहीं रह सकती वह कभी उन्नति
नहीं कर सकता..मेरे जैसे हजारो छात्र देश के तमाम विश्वविद्यालयो में उच्च सिक्षा के
लिये जाते हैं तथा उन विश्वविद्यालयो में भारी भरकम फिस चुकाते हैं ..लेकिन कक्षाओ
में मूक दर्शक बन कर बैठे रहते हैं ..क्योंकि उनके पढ़ने का माध्यम हिन्दी भाषा होता
हैं लेकिन प्रोफेसर लेक्चर अंग्रेजी में देते हैं ... वैसे देखा जाए तो ये गलती उनकी भी
नहीं ..ये गलती उस भारतीय प्रशासन की हैं जो आज तक हिन्ही भाषा, में उच्चा शिक्षा
कि व्यवस्था तक नहीं करवा पायी ...और न ही UGC या भारत सरकार कभी इस मसले
पर गंभीर प्रयास करती हैं.....आज भी भारत में उच्च शिक्षा केवल अंग्रेजी भाषा में उपलब्ध
हैं .और भारतीय विद्वान व भारतीय सरकार यह रोना रोते हैं हैं कि वैज्ञानिक सामाजिक आर्थिक विकास के लिये अंग्रेजी आवश्यक हैं ..यदि ऐसा हैं तो आखिर क्यो चीन व
जापान अपने भाषा के दम पर भारत से मीलो आगे हैं ... चीन व जापान में लोगो को
आज भी अंग्रेजी ठीक से बोलनी तक नहीं आती...अगर हमें भी समाजिक समरसता
के साथ आर्थिक विकास में समानता लानी हैं तो हमें भी एक भाषा को अपनाना होगा
हमें अपनी एक राष्ट्र भाषा बनानी होगी ..हमें हिन्दी को राष्ट्र भाषा घोषित करना होगा
...इसके विकास के लिये भारतीय साहित्यकारो को,भारतीय वैज्ञानिको ,समाजविदो
को हिन्दी के विकास पर बल देना होगा .हिन्दी को विज्ञान कि भाषा बनाना होगा
हिन्दी को समाज का भाषा बनाना होगा, हिन्दी को आर्थिक भाषा बनाना होगा उसके
बाद हिन्दी को हिन्द का ही नहीं विश्व का भाषा बनाना होगा जिससे एक हिन्दुस्तानी
अपने देश में ही नहीं बल्कि विश्व में भी अपने आप को पराया न महसूस कर सके ।
रविचन्द

बुधवार, 29 जून 2011

मेरी जीवन यात्रा: आम आदमी.....??

मेरी जीवन यात्रा: आम आदमी.....??: "आम आदमी..... ?? तमाम सारी चीजों की परिभाषाये जानने समझने के बाद भी आज तक मैं ये नही जान पाया की आम आदमी की परिभाषा क्या हैं.. और गरीबी की ..."

मंगलवार, 28 जून 2011

आम आदमी.....??



आम आदमी.....??
तमाम सारी चीजों की परिभाषाये जानने समझने के बाद भी आज तक मैं ये नही जान पाया की आम आदमी की परिभाषा क्या हैं..और गरीबी की परिभाषा क्या हैं? क्योकि हर स्तर पर दोनो को अलग अलग नजरिये से देखा जाता है। कई जगह पता किया पर कही से एक भी ऐसा जबाब मुझे नही मिला जो ये स्पष्ट परिभाषा दे सके की आम आदमी इस तरह का होता हैं...ऐसा होता हैं वैसा होता हैं ? जिसके मन में जो आता वह वैसी ही परिभाषा गढ़ता हैं ..मीडिया अलग अलग तरीके से परिभाषा बनाती हैं .सरकार अलग तरीके से परिभाषा बनाती ..समाजविदो कि नज़र में आम आदमी की परिभाषा अलग होती हैं..पर इस देश में आम आदमी की कोई एक परिभाषा नही गढ़ी गई हैं...एक चीज़ और अपने देश में सुना हैं गरीब भी रहते हैं...तो गरीब आदमी और आम आदमी मे फ़र्क क्या हैं ? देश के तमाम बढे अर्थशास्त्रीयों ने देश में गरीबी के उपर अपनी रिपोर्ट दी हैं पी सेन गुप्ता कहते हैं कि देश में 83.7प्रतिशत लोग गरीब हैं ..सरकार कहती हैं कि देश में 42 करोड़ लोग गरीब हैं ..भारतीय जनसंख्या जनगणना विभाग कहता हैं कि भारत में 37व करोड़ गरीब रहते हैं ..किसकी माने किसकी बातो पर विश्वास करे ..जरा गौर से एक बात सोचिए कि जिस देश में सरकार को खुद पता नही हैं कि उसके देश में उसके कितने प्रतिशत नागरिक गरीब हैं या अमीर या हैं फिर जिस देश में गरीबी के आकड़े के उपर इतनी ज्यादा विवाद है, फिर हम किससे आशा कर सकते हैं कि वह कोई आम आदमी और गरीबी के बारे में अलग अलग परिभाषा तय करने कि कोशिश करें।दरअसल भारत जैसा विकास का भ्रामक चेहरा किसी और देश में देखने को नही मिलता हैं ..यूएनडीपी कि रिपोर्ट को देखो तो भारत में 70 करोड लोग भूखमरी के शिकार हैं मतलब की देश में हर पॉच में से एक व्यक्त कुपोषित है। इंटरनेशनल हंगर इंडेक्स में भारत का 66 वॉ स्थान हैं। यहॉ तक की भारत के कई राज्य तो कई अफ्रीकी  अति पिछड़े देशो से भी ज्यादा गरीब हैं। इन सभी आंकड़ों को देखते हुये अब ये भी जानने की कोशिश करते हैं आम आदमी और गरीबी क्या हैं ..
गौरतलब हैं की हमारे देश में टैक्स में छूट दी जाती भिन्न भिन्न आय पर लोगो को भिन्न तरीके से छूट मिलती हैं .सबसे कम एक लाख 60 हजार से अधिक पर और तीन लाख से कम पर 10 हजार का टैक्स सरकार लेती हैं ...साल दर साल सबसे निचले स्तर पर टैक्स वसूलने व आम लोगो राहत देने के लिये आय की उपरी सीमा बढ़ा दी जाती हैं...सरकार कहती हैं की हमने आम लोगो को टैक्स में राहत दिया हैं ...दरअसल देश कि जनता जानना ये चाहती हैं कि आखिर आम लोग कौन हैं क्योंकि देश में जब 80 प्रतिशत से ज्यादा 20 रुपये पर रोजाना अपना गुजारा करते हैं मतलब की  साल में  कुल 7200 रुपये ही कमा पाते हैं ...आखिर जब देश कि जनता कि 80 प्रतिशत आबादी केवल 7200 रुपये पर गुजारा करती हैं तो किस आम आदमी के टैक्स में छूट दिया जाता ...तेल के दाम साल में 10बार से ज्यादा बढ़ा दिये गये सरकार की तरफ से हवाला दिया गया कि तेल कंपनीयो को घाटा हो रहा हैं ....लेकिन आकड़े उठाकर देखा जाये तो पिछले पांच सालो में किसी भी कंपनी को घाटा नही बल्कि मुनाफा हुआ..देखिये एक विश्लेषण....   
 वर्ष 2007
------
IOC को 7525 करोड़ रुपये मुनाफा
HPCL को 406 करोड़ रुपये का मुनाफा
BPCL को 129 करोड़ रुपये का मुनाफा
-------------------------
वर्ष 2008
--------
IOC को 6963 करोड़ रुपये मुनाफा
HPCL को 1268 करोड़ रुपए का मुनाफा
BPCL को 1806 करोड़ रुपये का मुनाफा
---------------------------
वर्ष 2009
-------
IOC को 2950 करोड़ रुपये का मुनाफा
HPCL को 726 करोड़ रुपए का मुनाफा
BPCL को 1581 करोड़ रुपये का मुनाफा
 वर्ष 2010
---------
IOC को 10221 करोड़ रुपये का मुनाफा
HPCL को 575 करोड़ रुपये का मुनाफा
BPCL को 736 करोड़ रुपये का मुनाफा
----------------------
 वर्ष 2011
----------
IOC को 7445 करोड़ रुपये का मुनाफा
HPCL को 1539 करोड़ रुपये का मुनाफा
BPCL को 1547 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ........
अब बताइये ,इसके बावजूद भी प्रत्येक इंधन का रेट बढ़ा दिया गया ....और कहा जा रहा हैं कि हम
महंगाई से आम आदमी को राहत देने के लिये हर संभव उपाय कर रहे हैं.. तो सवाल यो उठता हैं कि आम आदमी के लिये तमाम सारे उपाय किये जा रहे हैं...पर 80 प्रतिशत गरीबो के लिये क्या किया जा रहा हैं ???
              आम आदमी के लिये हर प्रकार से राहत देने के लिये प्रयास किये जा रहे हैं? ....और गरीबो को मिटाने का प्रयास किया जा रहा हैं ....हॉलाकि भारत में निचले स्तर पर इंसानो की एक और कैटगरी रहती जिसे किसान कहते हैं ...निचले स्तर पर इसलिये कि इनकी परवाह अब कोई नही करता तथाकथित संगठन हैं तो केवल राजनीतिक रोटी सेकने के लिये इनका इस्तेमाल करते हैं ...देश में किसानो कि हालत क्या हैं इस पर एक रिपोर्ट देखिये .......
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों के अनुसार पूरे भारत में 2009 के दौरान 17368 किसानों ने आत्महत्या की है.किसानों के हालात बुरे हुए हैं,
इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसानों की आत्महत्या की ये घटनाएँ, 2008 के मुकाबले 1172 ज़्यादा है. इससे पहले 2008 में 16196 किसानों ने आत्महत्या की थी। जिन राज्यों में किसानों की स्थिति सबसे ज़्यादा खराब है उनमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सबसे आगे हैं....जबकि ये राज्य खनिज पदार्थों से भरपूर हैं और इन्ही राज्यों कि जमीनो से कमाकर देश कि तमाम कंपनियों के मालिक देश के सबसे धनी लोगो में गिने जाते हैं । किसानों की आत्महत्या की कुल घटनाओं में से 10765 यानी 62 प्रतिशत आत्महत्याएँ इन पाँच राज्यों में ही हुई है.इन पाँच राज्यों के अलावा सबसे बुरी ख़बर तमिलनाडु से है. वर्ष 2009 में यहाँ दोगुने किसानों ने आत्महत्या की. वर्ष 2008 में यहाँ 512 किसानों ने आत्महत्याएँ कीं जो वर्ष 2009 में 1060 पर जा पहुँची.पिछले दस वर्षों से किसान आत्महत्याओं के आंकड़ो में अव्वल रहने के लिए बदनाम महाराष्ट्र 2009 में भी सबसे आगे रहा, हालांकि यहाँ आत्महत्या की घटनाओं में कमी आई है.महाराष्ट्र में 2009 के दौरान 2872 किसानों ने आत्महत्या की जो कि 2008 के मुकाबले 930 कम है.इसके बाद कर्नाटक में सबसे ज़्यादा 2282 किसानों ने आत्महत्याएँ की. केन्द्र शासित प्रदेशों में पॉन्डिचेरी में सबसे ज्यादा 154 किसानों ने आत्महत्या की.पश्चिम बंगाल में 1054, राजस्थान में 851, उत्तर प्रदेश में 656, गुजरात में 588 और हरियाणा में 230 किसानों ने आत्महत्या की.राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों के अनुसार 1997 से 2009 तक भारत में दो लाख 16 हज़ार 500 किसान आत्महत्या कर चुके हैं.कुल 28 राज्यों में से 18 राज्यों में किसान आत्महत्याओं की संख्या में इज़ाफा हुआ। इन ऑकडो को देखते हुये इस देश की बाजारबादी अर्थव्यवस्था पर तरस आता हैं टप्पणि करने को। पर हमें एक पैमाना तो तय करना होगा ही आम आदमी जिसमे परिभाषित हो गरीब भी हो और किसान भी ....अभी तक जो कैलोरी और तथाकथित आय के पैमाने पर गरीबो को परिभाषित किया गया हैं उसका आधार 1975 के दशक में तौयार किया गया था । आज भारत के 80% को छोड़कर पूरा इंडिया आगे निकल चुका हैं तो जरुरत हैं ...की आम आदमी के लिये, गरीबो के लिये, किसानो के लिये, एक नयी परिभाषा गढ़ी जाये .....ताकि नये हिन्दुस्तान की पीढ़ी हर एक का परिभाषा जानकर वह खुद को अपने को उस कैटगरी में रखने की कोशिश कर सके.......ये इसलिये.. कि इस देश से आम आदमी...और गरीबी कभी जाने वाली नही हैं.। पर आज लिखते समय एक खबर मिली हैं कि चव्वनी की विदाई हो गयी हैं बेचारी चव्वनी अपने आप को नही समेट सकी लोगो के साथ ...शायद गरीब भी कभी इस देश से चले जाये य़ा इतिहास में सिमट जाये....डर लगता हैं।
( ऑकडे बीबीसी और इंडियान्यूज के बिजनेस एडिटर सुरेश मनचंदा से लिया गया हैं उनके प्रति मेरा आभार हैं )