गुरुवार, 5 मई 2016

खुदकुशी, जो सियासी बाज़ार में नहीं बिक पाते

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक भारत में हर साल औसतन 1 लाख से ज्यादा लोग खुदकुशी कर लेते हैं। इनमें छात्रों की खुदकुशी का प्रतिशत 5 फीसदी से ज्यादा है। हाल में 17 जनवरी 2016 को 26 साल के हैदराबाद यूनिवर्सिटी के एक पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने इस दुनिया अलविदा कह दिया। रोहित की आवाज़ आज दिल्ली की सड़कों से लेकर संसद तक सुनाई दे रही है। सोशल मीडिया पर रोहित के इंसाफ के एक बड़ा तबका आगे आया है, उसकी तस्वीरों को लोगों ने अपना प्रोफाइल फोटो बनाया है। देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार और अभी जेल से अंतरिम ज़मानत पर बाहर आए जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने रोहित को अपना आदर्श बताया। कन्हैया ने रोहित को न्याय मिलने तक जंग का ऐलान किया।
ये अच्छी बात है कि एक छात्र की लड़ाई लड़ने एक छात्र आगे आया । लेकिन क्या इस देश में सिर्फ रोहित ने ही सुसाइड की है? क्या 17 जनवरी 2016 के बाद से देश में छात्रों ने सुसाइड नहीं की? ये सवाल बार-बार मेरे मन में उठ रहे हैं, और आगे इन्ही की पड़ताल है।
17 जनवरी के बाद से राजस्थान के कोटा, मध्यप्रदेश, और यूपी समेत दूसरे राज्यों में कई छात्रों ने खुदकुशी की। लेकिन ये खुदकुशी आज के सियासी बाज़ार में ‘बिकने’ लायक नहीं थे, लिहाजा आपमें से कईयों को इनके बारे में पता भी नहीं होगा।
रोहित ने जिस वक्त इस दुनिया को छोड़ा उस समय हैदराबाद में नगर निगम चुनाव का प्रचार-प्रसार जोरशोर से चल रहा था। रोहित चूंकि अंबेडकर स्टूडेंट यूनियन से जुड़ा हुआ था, उसका वैचारिक विवाद बीजेपी के अनुसंगी संगठन एबीवीपी से था। वो हैदराबाद यूनिवर्सिटी में आतंकवादी याकूब मेमन पर कार्यक्रम करता था और एबीवीपी उसका विरोध। इस मामले में दो केंद्रीय मंत्रियों के हस्तक्षेप की बात आई, और बस क्या था। ये मौत सियासी बाजार के लिए सबसे अच्छा प्रोडक्ट थी। इस दुखद घटना के बाद हर सियासी दल अचानक से दलितों का हितैषी बन गया, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमाम नेताओं ने हैदराबाद का सियासी दौरा किया।
अचानक से कैडल लाइट वाले प्रज्वलित हो गए, और एक मां जो अपने बेटे के गम में थी, उसे जबरन अपने साथ लेकर सड़कों पर घूमते रहे।

कार्टूनिस्ट मंजुल के ये रेखाचित्र के इस मौत और सियासी त्रासदी को बेहतर तरीके से दिखा रहे हैं। बाकी आप आप इस तस्वीर को देखकर खुद सोचिए हम किस दिशा में जा रहे हैं।
राजस्थान का कोटा शहर देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल की नर्सरी कहा जाता है। यहां हर साल करीब 1 लाख 70 हजार बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना लेकर आते हैं। लेकिन अफसोस, पिछले कुछ सालों में यहां कई बच्चों के सपने हमेशा के लिए दफ्न हो गए। NCRB के 2014 के आकड़ों के मुताबिक कोटा में छात्रों की सुसाइड में 61 फीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2015 में कोटा में करीब 29 छात्रों ने खुदकुशी कर ली।
वर्ष          खुदकुशी      की संख्या
1991                       1     1992                       3
1993                       2     1994                       1
1995                       4     1996                       6
1997                       4     1998                       2
1999                       7     2000                       26
2001                       11    2002                       NIL
2003                       18    2004                       21
2005                       15    2006                       9
2007                       32    2008                       7
2009                       15    2010                       9
2011                       4     2012                       2
2013                       17    2014                       26
2015                       29
ये आकड़े भारत में उदारीकरण की शुरूआत के बाद के हैं, 1991 में जब भारत में उदारीकरण की शुरूआत हुई थी, तब से लेकर आजतक हर साल कोटा में कोई न कोई बच्चा अपने सपने को कब्र में दफ्न कर रहा है। हैरानी की बात ये है कि ये सभी बच्चे उन कोचिंग संस्थाओं में पढ़ते हैं, जो निजी है, और शिक्षा के नाम पर भारी भरकम फीस लेते हैं। चूंकि ये मासूम बच्चे किसी सियासी दल के प्रोडक्ट नहीं बन पाते इसीलिए इनकी मौत पर किसी संसद में क्या किसी राज्य में भी हंगामा नहीं होता। कोई स्थानीय क्रांतिकारी भी हाथों में मोमबत्ती लेकर सड़क पर नहीं निकलता।

2015 में राजस्थान के कोटा में खुदकुशी  के आकड़े

5 जून 2015 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले से कोटा में अपनी बेटी को कोचिंग में दाखिला दिलाने आये पिता ने अपनी बेटी के साथ पंखे से लटक कर जान दे दी ।
5 जून 2015 को झारखण्ड की रहने वाली एक छात्रा जो कोटा में ऐलन कोचिंग सेंटर से कोचिंग कर रही थी, तनाव के चलते खुदकुशी कर ली ।
7 जून 2015 को यूपी के सहारनपुर के रहने वाले 17 साल के छात्र भूपेंद्र ने पंखे से लटककर अपनी जान दे दी, भूपेंद्र ऐलन संस्थान से कोचिंग करता था ।
16 जून 2015 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर से कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्र दिव्यांश ने खुदकुशी कर ली । दिव्यांश एलन संस्थान से मेडिकल की तैयारी कर रहा था ।
20 जुलाई 2015 को इलाहबाद से कोटा में आईआईटी की कोचिंग कर रहे छात्र अविनाश ने खुदकुशी कर ली । अविनाश रेजोनेंस कोचिंग संस्थान से तैयारी करता था ।
11 अगस्त 2015 को मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से कोटा में एलन संस्थान से आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्र योगेश ने खुद को आग लगा कर अपनी जान दे दी ।
13 अक्टूबर 2015 को बिहार के मुजफ्फरपुर से आकर एलन संस्थान से मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्र सिद्दार्थ ने अपनी जान दे दी ।
28 अक्टूबर 2015 को राजस्थान के भीलवाड़ा के 17 साल के छात्र विकास ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी । विकास कोटा के रेसोनेंस संस्थान से आईआईटी की तैयारी कर रहा था ।
1 नवम्बर 2015 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रही छात्रा अंजलि आनंद ने पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली । अंजलि एलन संस्थान से कोचिंग करती थी ।
3 दिसंबर 2015 पंजाब के लुधियाना के छात्र वरुण ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी । वरुण भी एलन कोचिंग संस्थान से कोचिंग कर रहा था ।
23 दिसंबर 2015 को राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले शिवदत्त ने भी फंदे से लटक कर अपनी खुदकुशी कर ली। शिवदत्त एलन कोचिंग संस्थान से कोचिंग कर रहा था ।
अब बात मध्यप्रदेश की, इस साल मध्यप्रदेश में अबतक 8 बच्चे खुदकुशी कर चुके हैं।
2 मार्च- इंदौर की 10वीं की स्टूडेंट गुलसार ने खुदकुशी की
2 मार्च- भोपाल की 9वीं की छात्रा प्रगति ने सुसाइड कर लिया, 27 फरवरी – 9वीं के छात्र सुमित ने किया सुसाइड
23 फरवरी – 11वीं के छात्र आदित्यमान सिंह ने की खुदकुशी, 10 फरवरी – इंजीनियर के छात्रा मल्ला वेंकटेश ने दी जान
1 फरवरी – बीकॉम के छात्र अंकित ग्रोवर ने किया सुसाइड , 18 जनवरी – 8वीं में पढ़ने वाली छात्रा प्रिया कुचबंदिया ने दी जान, 13 जनवरी – 11वीं की छात्रा सृष्टि ने की खुदकुशी
NCRB के मुताबिक साल 2013 में 2,471 बच्चों ने एग्जाम में फेल होने के कारण खुदकुशी कर ली।
छात्रों की खुदकुशी के बाद अब बात इस देश के अन्नदाता की। कितना अजीब ज़िंदगी जी रहे हैं, ज़रा सोचिए, जो अन्नदाता हमारे लिए मेहनत करके खेत में अन्न उगाता है वहीं भूखे मर जाता है।
दो दिन पहले राज्यसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बताया कि अकेले 2015 में महाराष्ट्र में 3,228 हजार किसानों ने अपनी जान दी। जो पिछले 14 सालों में सबसे ज्यादा है। इस साल जनवरी से लेकर अबतक 124 से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की है।
अब ज़रा सोचिए, जिस देश में हर दिन कोई न कोई किसान, मज़दूर, ग़रीब, छात्र किसी न किसी वजह से खुदकुशी करता है, लेकिन आखिर रोहित वेमुला की खुदकुशी ही संसद में क्यों गूंजती है? आखिर रोहित वेमुला के लिए ही सड़कों पर मोमबत्ती क्यों जलती है? आखिर दिल्ली की सरकार रोहित वेमुला के भाई को ही नौकरी क्यों ऑफर करती है?
इस देश में हर दिन कोई न कोई रोहित मरता है, इस देश में हर दिन कोई न किसान मरता है, लेकिन उसकी आवाज़ें संसद की मोटी चहारदीवारी के अंदर इसीलिए नहीं गूंज पाती, कि वो सियासी बाज़ार का परफेक्ट प्रोडक्ट नहीं होता है।

मंगलवार, 2 जून 2015

हमारी नामाकी हंगामा खड़ा करती है

सार्थक तर्क करने की शक्ति हमें न केवल प्रबुद्ध लोगों के बीच सम्मान दिलाती है, बल्कि हम खुद हर परिस्थिति में अपने आप को ज्यादा मज़बूत महसूस कर पाते हैं। लेकिन जब हमारे पास अपनी बात को उचित तरीके से कहने के लिए शब्दों का अभाव होता है, विचारों की कमी होती है, तब हम सामने वालों पर न केवल अर्नगल आरोप लगाते हैं, बल्कि उत्तेजित होकर अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश भी करते हैं। पिछले दो दिन की दो घटनाएं ऐसी हैं जिन पर शायद ये मेरे विचार ठीक बैठते हैं । पहली घटना केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी से जुड़ी है, और दूसरी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से। विदेश मंत्रालय के साल भर के कामों का ब्यौरा देते हुए सुषमा स्वराज का स्वभाव स्मृति जुबिन ईरानी को आईना दिखता है। तीन दिन पहले विदेश मंत्रालय की प्रेस वार्ता शुरू करते समय अधिकारियों ने कहा कि पत्रकारों को सवाल-जवाब करने के लिए एक घंटे का समय दिया जाएगा। जो पत्रकार सवाल पूछना चाहते हैं वो हाथ खड़े करें, लेकिन सभी का सवाल नहीं लिया जाएगा। लगभग सभी पत्रकारों ने हाथ खड़े कर दिए, इसी बीच सुषमा स्वराज ने कहा कि जितने भी हाथ खड़े हैं, सभी के लिए सवाल लिए जाएंगे । इसके बाद शुरू हुआ सवाल-जवाब का सिलसिला डेढ़ घंटे से ज्यादा चला, और विदेश मंत्री ने विनम्रता से सभी के सवालों को सुना और जवाब दिया। सवाल उनकी व्यक्तिगत जीवन से लेकर कूटनीतिक, राजनीतिक, विदेश दौरा और पीएम मोदी के कैबिनेट पर हावी रहने पर था, लेकिन सभी सवालों का सुषमा ने जितनी सहजता से और बिना अपने अधिकरियों से सलाह लिए जवाब दिया, उसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। अक्सर कूटनीतिक मामलों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है, ज्यादातर सवाल मंत्री से पूछे जाते हैं, और जवाब अधिकारी देते हैं। साथ समय की पाबंदी भी होती है। लेकिन यहां सब कुछ अलग था। 

दूसरी तस्वीर स्मृति जुबिन ईरानी की,
12वीं पास ईरानी छोटे परदे से निकलकर बीजेपी में शामिल हुईं और 2014 लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा जिसमें उन्हे अमेठी की जनता ने हार का ताज पहनाया। भारतीय लोकतंत्र के रंगमंच की यहीं सबसे बड़ी खूबी है कि यहां स्टेज पर मौका सबको मिल जाता है, चाहे वो कलाकार हो या ना हो।
ठीक स्मृति ईरानी को भी हार के बावजूद नरेंद्र मोदी कैबिनेट में सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मिला । दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर दिनेश सिंह से शुरु हुआ उनका विवाद आईआईटी, एनआईटी नागपुर, शिक्षा नीति, तमाम नियुक्तियों में सामने आया और आ रहा है। कल जो आज तक चैनल के कार्यक्रम में घटना घटी को ईरानी के तर्क करने की शक्ति, पूछे गए सवालों के जवाब के बजाए हंगामा, और अनर्गल आरोप लगाकर अपने आप को स्त्री और मंत्री के रुप में  श्रेष्ठ करने से ज्यादा कुछ नहीं है। जहां तक मैं जानता हूं, आज तक के अशोक सिंघल एक संजीदा पत्रकार हैं, उन्होने अपने कार्यक्रम में स्मृति ईरानी से ये सवाल पूछा कि ,
नरेंद्र मोदी ने आपके अंदर ऐसा क्या देखा जो आपको मानव संसाधन मंत्री बना दिया। स्मृति चाहती को सवाल को जवाब बहुत साधारण शब्दों में दे सकती थी । लेकिन इसके बजाए उन्होने हंगामा खड़ा करना ज्यादा मुनासिब समझा। उन्होने अशोक सिंघल के सवाल का इंटरपिटेशन ठीक वैसा किया जैसे कोई गंवार करता । उन्होने इस को खुद के स्त्री होने से जो दिया। और बार वहां मौजूद पब्लिक को सुनाया। जिस अंदाज में वो अशोक सिंघल के सवालों को जनता से बार-बार सुना रही थीं, उससे साफ दिख रहा है, कि मकसद स्टूडियो के अंदर अराजकता फैलाने कम कुछ नहीं था। दरअसल, ये सामान्य सी बात है कि जब हम अपने बचाव में उचित तर्क नहीं रख पाते हैं, तब हम हंगामा करते हैं, चिल्लाते हैं, और अराजकता का रास्ता अख्तियार करते हैं।  और यहीं मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी कर रही हैं। 2014 में तैयार हुए भक्तों का भी यहीं हाल है।

रविवार, 24 मई 2015

झीरम घाटी का नरसंहार


 25 मई 2013, दो साल पहले इसी दिन छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के झीरम घाटी में सबसे बड़ा नक्सली हमला हुआ था। चुनावी रैली के लिए जा रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले को नक्सलियों ने घेर लिया था और ताबड़तोड़ गोलीबारी में कांग्रेस के 29 नेता मारे गए थे। सलवा जुडुम से जुड़े महेंद्र कर्मा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल समेत 29 लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
 नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल और उनके बेटे को बहुत ही बेरहमी से मारा था । उनके नफरत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होने महेंद्र कर्मा के शरीर को चाकुओं और गोलियों से छलनी कर दिया था। नंद कुमार पटेल के बेटे दिनेश की खोपड़ी को तरबूज की तरह जगह-जगह से चीर दिया गया था। मैं छत्तीसगढ़ में 11 महीने तक रहा उस दौरान की ये वहां की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी। हमले के बाद छत्तीसगढ़ का माहौल काफी खराब हो गया था। हमारे न्यूज़ रूम से लेकर सड़कों तक ये चर्चा हो रही थी कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजीत जोगी ने कांग्रेस के नेताओं को मारवाया है। कुछ अख़बारों ने अजीत जोगी की तरफ इशारा करते हुए ख़बरें भी छापी थी हालांकि किसी ने भी किसी का नाम नहीं छापा था। उस दौरान एक चर्चा ये भी थी कि रमन सरकार अगले 24 घंटे में गिर जाएगी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जाएगा क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार है। बहरहाल, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और थोड़े दिनों बाद बात आई-गई हो गई। नक्सली हमले में जवानों के मारे की ख़बरें सुनने वालों को पहली बार अपनों के मारे जाने पर ग़म ज़रुर था, लेकिन वहां के लोग अब इसके भी आदि हो गए हैं।

अब बात जांच की

देश में पहली बार नेताओं पर इतने बड़े नक्सली हमले से छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरा देश स्तब्ध था। राज्य की रमन सरकार ने बिलासपुर हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अध्यक्षता में एकल सदस्यीय आयोग का गठन किया गया, जो अभी जांच कर ही रहा है । इधर, केंद्र की मनमोहन सरकार ने NIA को जांच सौंपा, शुरूआत में NIA ने बहुत तेजी से जांच की, हमारे संपादक महोदय से NIA ने करीब 2 घंटे से ज्यादा तक पूछताछ की और वीडियो फुटेज लिए, क्योंकि इस हमले की ख़बर सबसे पहले हमारे रिपोर्टर नरेश मिश्रा ने ही दी थी और वही एक मात्र ऐसा रिपोर्टर थे जो नक्सलियों की फायरिंग के बीच घटनास्थल पर पहुंचे थे। NIA की जांच चल ही रही थी कि फिर ये ख़बर उड़ी की अजीत जोगी का नाम हमले में आ रहा है, लेकिन कुछ दिनों बात ये भी ख़बर आई-गई हो गई, और आज तक NIA की जांच चल ही रही है। उम्मीद आगे भी चलती रहेगी।


इस घटना से जिस एक बात को लेकर मैं परेशान हुआ वो ये कि इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेस नेताओं की हत्या के बाद भी केंद्र ने ना ही नक्सलियों के खिलाफ कोई बड़ा अभियान चलाया, ना ही राज्य सरकार के खिलाफ कोई एक्शन लिया गया और ना ही अपनी 'सशक्त' एजेंसियों से मामले की एक समय सीमा के भीतर जांच करवाई गई ।