नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के मुताबिक भारत में हर साल औसतन 1 लाख से ज्यादा लोग खुदकुशी कर लेते हैं। इनमें छात्रों की खुदकुशी का प्रतिशत 5 फीसदी से ज्यादा है। हाल में 17 जनवरी 2016 को 26 साल के हैदराबाद यूनिवर्सिटी के एक पीएचडी छात्र रोहित वेमुला ने इस दुनिया अलविदा कह दिया। रोहित की आवाज़ आज दिल्ली की सड़कों से लेकर संसद तक सुनाई दे रही है। सोशल मीडिया पर रोहित के इंसाफ के एक बड़ा तबका आगे आया है, उसकी तस्वीरों को लोगों ने अपना प्रोफाइल फोटो बनाया है। देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार और अभी जेल से अंतरिम ज़मानत पर बाहर आए जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने रोहित को अपना आदर्श बताया। कन्हैया ने रोहित को न्याय मिलने तक जंग का ऐलान किया।
ये अच्छी बात है कि एक छात्र की लड़ाई लड़ने एक छात्र आगे आया । लेकिन क्या इस देश में सिर्फ रोहित ने ही सुसाइड की है? क्या 17 जनवरी 2016 के बाद से देश में छात्रों ने सुसाइड नहीं की? ये सवाल बार-बार मेरे मन में उठ रहे हैं, और आगे इन्ही की पड़ताल है।
17 जनवरी के बाद से राजस्थान के कोटा, मध्यप्रदेश, और यूपी समेत दूसरे राज्यों में कई छात्रों ने खुदकुशी की। लेकिन ये खुदकुशी आज के सियासी बाज़ार में ‘बिकने’ लायक नहीं थे, लिहाजा आपमें से कईयों को इनके बारे में पता भी नहीं होगा।
रोहित ने जिस वक्त इस दुनिया को छोड़ा उस समय हैदराबाद में नगर निगम चुनाव का प्रचार-प्रसार जोरशोर से चल रहा था। रोहित चूंकि अंबेडकर स्टूडेंट यूनियन से जुड़ा हुआ था, उसका वैचारिक विवाद बीजेपी के अनुसंगी संगठन एबीवीपी से था। वो हैदराबाद यूनिवर्सिटी में आतंकवादी याकूब मेमन पर कार्यक्रम करता था और एबीवीपी उसका विरोध। इस मामले में दो केंद्रीय मंत्रियों के हस्तक्षेप की बात आई, और बस क्या था। ये मौत सियासी बाजार के लिए सबसे अच्छा प्रोडक्ट थी। इस दुखद घटना के बाद हर सियासी दल अचानक से दलितों का हितैषी बन गया, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमाम नेताओं ने हैदराबाद का सियासी दौरा किया।
अचानक से कैडल लाइट वाले प्रज्वलित हो गए, और एक मां जो अपने बेटे के गम में थी, उसे जबरन अपने साथ लेकर सड़कों पर घूमते रहे।
कार्टूनिस्ट मंजुल के ये रेखाचित्र के इस मौत और सियासी त्रासदी को बेहतर तरीके से दिखा रहे हैं। बाकी आप आप इस तस्वीर को देखकर खुद सोचिए हम किस दिशा में जा रहे हैं।
राजस्थान का कोटा शहर देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल की नर्सरी कहा जाता है। यहां हर साल करीब 1 लाख 70 हजार बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना लेकर आते हैं। लेकिन अफसोस, पिछले कुछ सालों में यहां कई बच्चों के सपने हमेशा के लिए दफ्न हो गए। NCRB के 2014 के आकड़ों के मुताबिक कोटा में छात्रों की सुसाइड में 61 फीसदी की वृद्धि हुई है। साल 2015 में कोटा में करीब 29 छात्रों ने खुदकुशी कर ली।
वर्ष खुदकुशी की संख्या
1991 1 1992 3
1993 2 1994 1
1995 4 1996 6
1997 4 1998 2
1999 7 2000 26
2001 11 2002 NIL
2003 18 2004 21
2005 15 2006 9
2007 32 2008 7
2009 15 2010 9
2011 4 2012 2
2013 17 2014 26
2015 29
ये आकड़े भारत में उदारीकरण की शुरूआत के बाद के हैं, 1991 में जब भारत में उदारीकरण की शुरूआत हुई थी, तब से लेकर आजतक हर साल कोटा में कोई न कोई बच्चा अपने सपने को कब्र में दफ्न कर रहा है। हैरानी की बात ये है कि ये सभी बच्चे उन कोचिंग संस्थाओं में पढ़ते हैं, जो निजी है, और शिक्षा के नाम पर भारी भरकम फीस लेते हैं। चूंकि ये मासूम बच्चे किसी सियासी दल के प्रोडक्ट नहीं बन पाते इसीलिए इनकी मौत पर किसी संसद में क्या किसी राज्य में भी हंगामा नहीं होता। कोई स्थानीय क्रांतिकारी भी हाथों में मोमबत्ती लेकर सड़क पर नहीं निकलता।
2015 में राजस्थान के कोटा में खुदकुशी के आकड़े
5 जून 2015 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले से कोटा में अपनी बेटी को कोचिंग में दाखिला दिलाने आये पिता ने अपनी बेटी के साथ पंखे से लटक कर जान दे दी ।
5 जून 2015 को झारखण्ड की रहने वाली एक छात्रा जो कोटा में ऐलन कोचिंग सेंटर से कोचिंग कर रही थी, तनाव के चलते खुदकुशी कर ली ।
7 जून 2015 को यूपी के सहारनपुर के रहने वाले 17 साल के छात्र भूपेंद्र ने पंखे से लटककर अपनी जान दे दी, भूपेंद्र ऐलन संस्थान से कोचिंग करता था ।
16 जून 2015 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर से कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्र दिव्यांश ने खुदकुशी कर ली । दिव्यांश एलन संस्थान से मेडिकल की तैयारी कर रहा था ।
20 जुलाई 2015 को इलाहबाद से कोटा में आईआईटी की कोचिंग कर रहे छात्र अविनाश ने खुदकुशी कर ली । अविनाश रेजोनेंस कोचिंग संस्थान से तैयारी करता था ।
11 अगस्त 2015 को मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा से कोटा में एलन संस्थान से आईआईटी की तैयारी कर रहे छात्र योगेश ने खुद को आग लगा कर अपनी जान दे दी ।
13 अक्टूबर 2015 को बिहार के मुजफ्फरपुर से आकर एलन संस्थान से मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्र सिद्दार्थ ने अपनी जान दे दी ।
28 अक्टूबर 2015 को राजस्थान के भीलवाड़ा के 17 साल के छात्र विकास ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी । विकास कोटा के रेसोनेंस संस्थान से आईआईटी की तैयारी कर रहा था ।
1 नवम्बर 2015 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रही छात्रा अंजलि आनंद ने पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली । अंजलि एलन संस्थान से कोचिंग करती थी ।
3 दिसंबर 2015 पंजाब के लुधियाना के छात्र वरुण ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी । वरुण भी एलन कोचिंग संस्थान से कोचिंग कर रहा था ।
23 दिसंबर 2015 को राजस्थान के धौलपुर के रहने वाले शिवदत्त ने भी फंदे से लटक कर अपनी खुदकुशी कर ली। शिवदत्त एलन कोचिंग संस्थान से कोचिंग कर रहा था ।
अब बात मध्यप्रदेश की, इस साल मध्यप्रदेश में अबतक 8 बच्चे खुदकुशी कर चुके हैं।
2 मार्च- इंदौर की 10वीं की स्टूडेंट गुलसार ने खुदकुशी की
2 मार्च- भोपाल की 9वीं की छात्रा प्रगति ने सुसाइड कर लिया, 27 फरवरी – 9वीं के छात्र सुमित ने किया सुसाइड
23 फरवरी – 11वीं के छात्र आदित्यमान सिंह ने की खुदकुशी, 10 फरवरी – इंजीनियर के छात्रा मल्ला वेंकटेश ने दी जान
1 फरवरी – बीकॉम के छात्र अंकित ग्रोवर ने किया सुसाइड , 18 जनवरी – 8वीं में पढ़ने वाली छात्रा प्रिया कुचबंदिया ने दी जान, 13 जनवरी – 11वीं की छात्रा सृष्टि ने की खुदकुशी
NCRB के मुताबिक साल 2013 में 2,471 बच्चों ने एग्जाम में फेल होने के कारण खुदकुशी कर ली।
छात्रों की खुदकुशी के बाद अब बात इस देश के अन्नदाता की। कितना अजीब ज़िंदगी जी रहे हैं, ज़रा सोचिए, जो अन्नदाता हमारे लिए मेहनत करके खेत में अन्न उगाता है वहीं भूखे मर जाता है।
दो दिन पहले राज्यसभा में केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बताया कि अकेले 2015 में महाराष्ट्र में 3,228 हजार किसानों ने अपनी जान दी। जो पिछले 14 सालों में सबसे ज्यादा है। इस साल जनवरी से लेकर अबतक 124 से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की है।
अब ज़रा सोचिए, जिस देश में हर दिन कोई न कोई किसान, मज़दूर, ग़रीब, छात्र किसी न किसी वजह से खुदकुशी करता है, लेकिन आखिर रोहित वेमुला की खुदकुशी ही संसद में क्यों गूंजती है? आखिर रोहित वेमुला के लिए ही सड़कों पर मोमबत्ती क्यों जलती है? आखिर दिल्ली की सरकार रोहित वेमुला के भाई को ही नौकरी क्यों ऑफर करती है?
इस देश में हर दिन कोई न कोई रोहित मरता है, इस देश में हर दिन कोई न किसान मरता है, लेकिन उसकी आवाज़ें संसद की मोटी चहारदीवारी के अंदर इसीलिए नहीं गूंज पाती, कि वो सियासी बाज़ार का परफेक्ट प्रोडक्ट नहीं होता है।