शुक्रवार, 10 जून 2011

मीडिया की ताकत

एक 75 साल के बुढ्ढे कि एक आवाज पर जंतर मंतर पर वो हुजूम उमड़ा
जो केवल जेपी के समय रामलीला मैदान में उमडा था ..जेपी कि तुलना अण्णा से नहीं की जा सकती पर दोनों के विचारो और समय के बारे में एक बार सोचना हमारा फर्ज़ जरुर बनता हैं.. ताकि 40 सालो के दैरान गुजरी एक पीढ़ी  हुयी समाज में हुये तमाम बदालवो की गहराईयो के जान सके....जहाँ तक मेरे विचार में समाज के अन्दर जो सबसे बड़ बदलाव हुआ वो इलेक्ट्राँनिक मीडिया का आगमन था ...जिसे आज भी कई लोग बुद्दु बक्सा कहते हैं ...वाक्ई में मैने कभी सोचा नहीं था कि एक बक्सा मेरे घर में आयेगा और मुझे ये बताने में इतना सक्षम होगा की जंतर मंतर पर जाना हैं ....और रामदेव को वही काम करते हुये मुझे गाली देना हैं ...कैमरे कि भीड़ ने कभी  कभी जंतर मंतर की तुलना जैसमीन आन्दोलन से जरुर कर दिया ...पर मुझे इतना सोचने पर जरुर विवस कर  आखिर ऐसा  क्या  हैं कि  बाजारवाद की दौड़ में   घर की बेडरुम या आपिस में बैठने   की बजाऐ इंसान धूप में धक्के खा रहा हैं ....दरअसल इंसान को वहाँ तक ले जाने वाला वो मीडिया था जो उसी इंसान को ये बतात हैं कि अगर आप नोकिया का फोन ऱखते हैं तो आप इंसान हैं अन्यथा आप कुत्ता हैं ....खैर इसे छोडि़ये बात मुद्दे कि करते हैं ..ताकत मीडिया कि  देखते हैं ...एक दिन अण्णा ने कहा दूसरे दिन 20000 हजार से ज्यादा लोग राजघाट पहुज गये ..कहने वाले कह सकते हैं की लोग भ्रट्राचार से परेशान हैं ..लोग सरकार सो नाराज हैं वैगरह वैगेरह .....पर यकिन मानिये इसके पीछे एक बड़ी ताकत जो थी... वो उस कैमरे कि थी ...जिसे हम इलेक्ट्रनिक मीडिया कहते हैं ...  

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