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सरकारी मुलाज़िमों से एक वास्ता
------------------...: सरकारी मुलाज़िमों से एक वास्ता ----------------------------------- कुछ दिनों पहले कुछ सरकारी मुलाज़िमों से पाला पड़ा उनके वर्ताव का ...
शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012
सरकारी मुलाज़िमों से एक वास्ता
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कुछ दिनों पहले कुछ सरकारी मुलाज़िमों से पाला पड़ा उनके वर्ताव का नज़रिया किस तरीके से था...पेश एक रिपोर्ट
स्थान-इग्नू का स्टडी सेंटर देशबंधु कॉलेज
एक छात्र इग्नू के स्टडी सेंटर में जाता है उसको सेंटर में अपना एसाइनमेंट जमा कराना होता है ...
छात्र- सर एसाइनमेंट जमा कर लीजिए
इग्नू- उस काउंटर पर जाइए
छात्र- सर एसाइनमेंट जमाकर लीजिए
इग्नू -कोई जवाब नही...
छात्र- सर एसाइनमेंट जमाकर लीजिए...
इग्नू -कोई जवाब नही...
छात्र- सर एसाइनमेंट जमाकर लीजिए...
इग्नू- दिखाई नहीं देता फोन पर बात कर रहा हूं...
छात्र- दिखाई तो दे रहा है पर जमा तो कर लीजिए..
इग्नू- नही जमा कर रहा ..जाओं यहां से जो मन में आए कर लेना..जा के कह दो जिससे कहना है..
छात्र- ऐसे क्यूं बोल रहे है ...
इग्नू- बदत्तमीजी मत करों मै कह रहा हूं जाओं यहां से ...नही जमाकर करुगां तुम्हारा एसाइनमेंट
छात्र-सर बार बार ऐसे मत बोलिए एसाइनमेंट जमा करना आपका काम है और इसे जमाकर करने से मना नहीं कर सकते.
इग्नू- मै कह रहा हूं चले जाओं यहां से ..तुम बताओगे मुझे क्या करना है क्या नही करना..
छात्र- सर मै बता नही रहा हूं ये आपका काम है और इसेक लिए इग्नू आपको तनख्वाह देता है ...औऱ छात्र फीस देते है...आप छात्रों की सेवा करने के लिए बैठे हुए ..
इग्नू के कर्मचारी साहब अब बड़े गुस्से में आ गए है ..और अपनी कुर्सी से खड़े हो गए है, फुल गुस्से में है ...जो मन में आया है वो बोल रहे है ...चिल्लाना शुरु क दिए है सभी कर्मचारी इक्कठ्ठे हो गए है ...सब मिलकर कह रहे है एसाइनमेंट जमा नही करना है जो होगा देखा जाएगा...एक बार को मै चुप सा हो गाय लेकिन ज्यादा देर तक नही संभाल सका...अपने आप को ...सभांलता भी कैस जो एक पत्रकार होने का गुमान है ...पर क्या पता था ये गुमान इन सरकारी मुलाज़िमों के सामने थोड़ी देर में ही उतर जाएगा ...
देखिए आगे की कहानी कैसे शुरु होती है...
छात्र एक बार को थोड़ी देर तक चुप रहता है ...फिर बोलता है सर एसाइनमेंट जमा कर लीजिए...कर्मचारी साहब फिर कहते है मै तुम्हारा एसाइमेंट नही जमा करुंगा जाओ जिसे बुलाना हो बुला लो ..जो करना है कर लो...
बेचारा छात्र को पत्रकारिता का सारा गुमान ज़मीन पर आ चुका है ...सोच रहा है कि क्या करें क्या न करें...
पर बहुत देर सोचता है कि आखिर सरकारी प्रणालियां और सरकारी मुलाजिमों के खिलाफ लोगों को गुस्सा क्यों आता है ...भावनाएं और भी व्यक्त करु इससे पहले पूरू कहानी सुना देता हूं..
दूबारा जब छात्र के कहने पर इग्नू के कर्मचारी उसका एसाइनमेंट जमा नही करते तो देखिए छात्र क्या करता है
छात्र- इग्नू को कर्मचारियों से परेशान होकर अब पुलिस के शरण में जाता है और सोचता है की उसे वहां से कोई न्याय मिलेगा लेकिन देखिए आगे क्या ह्श्र होता है..
छात्र- 100 नम्बर पर कॉल करता है...पुलिस से रिस्पांस मिलता है
2 बजकर 15 मिनट पर कॉल करता है ठीक 15 मिनट बाद पुलिस आती है
पीसाआर बैन आता है..
अंगडाई लेते हुए पुलिस वाला कहता है.. क्या मामला है ...
छात्र अपना मामला सुनाता है
पुलिस वाला अंगडाई लेते हुए मामला सुनता है ..फिर कहता है करें अब...छात्र कहता है करें क्या सर ...इस तरह की घटना घटी है..कार्रवाई कीजिए..
पीसीआर में बैठे हुए ही ...पुलिस वाला बोलता है चलो थाने में एफआईआर डाल देना फिर देखते है की क्या हुआ है
छात्र बोलता है सर इग्नू के कर्मचारियों की ड्यूटी खत्म हो गई है ..और वो जाने वाले है ...देखिए गेट पर खड़े है ..वो है मोटरसाइकिल वाले..
पुलिस वाला बोलता है तो क्या दौड़ के पकडू क्या...ऐसे तो नही होता न ..
बेचारा छात्र समाजिक नज़रिय का मारा...तमाम सारी बाते सोचने लगता है और खो जाता है फिर सोचने लगता है कि आखिर पुलिस पर लोगों को गुस्सा क्यों आता है ..तमाम सारी बाते सोचने लगता है ...
अब उसके दिमाग में वो भावनाए उत्पन हो रही है जो व्यवस्था के खिलाफ एक आम आदमी के दिमाग में उत्पन होती ही ..
तभी फोन आता है ..
थाने से बोल रहा हूं
हां भाई क्या मामला है..
छात्र- सर ऐसे हुआ है ..इस इस तरह का मामला है
कोई नहीं थाने आ जाओं और एक एफआईआर डाल दों देख लेगें
छात्र को गुस्सा आता है वो सोचता रहता है कि थाने जाउं न जाउं
अंत में वो ऐ सोच के थाने नही जाता है कि जब पीसीआर आई थी तो उसके सामने आरोपी थे और उसने कुछ नही किया तो थाने जाकर क्या होगा..फिर ये सोचता है कि मेरे जैसे कितने लोग थाने में जाते है कुछ नही होता तो मेरे जाने से क्या होगा...एक औऱ बार ही सही फिर सरकारी मुलाज़िलों के पाला वैसे भी बहुत दिन हो गए थे ..कम से कम इनका हक़ीक़त तो सामने आई....
घटना के बाद से छात्र मायूस हुआ खुद पर नही..इस व्यवस्था पर...जो अपने पद पर एक बार बैठने के बाद अपने को सर्वसत्ताधारी समझते है...
हल खोजने लगा इस सामंतवादी व्यवस्था का ..पर नही ढूंढ पाया...अब छात्र थाने भी नही गया..घर लौट आया...
गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012
खेती..ना बाबा ना..
इंसान का
पलायन चाहे जिस वज़ह से हो
हमेशा दुखद होता है … आदमी कभी
बेहतरी के लिए पलायन करता है
तो कभी दुखी होकर पलायन कर
जाता है । दरअसल प्रवास इंसानी
ज़िन्दगी का एक हिस्सा सा बन
गया है । भारत ..जिस
देश की 70 प्रतिशत
से अधिक की आबादी खेती से
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप
से जुड़ी हुई है ..उस
देश में पिछले कुछ सालों से
लाखों किसान खेती को छोड़ चुके
है..देश में साल दर
साल किसानों की आत्महात्या
की आकड़ो में बढ़ोत्तरी होती
जा रही है । लेकिन सरकार GDP
के आकड़े के सहारे यह
दावा करती है कि देश में विकास
हो रहा है...वहीं
योजना आयोग सुप्रीम कोर्ट
में यह दलील देता है कि 32
रुपये कमाने वाले
ग़रीबी रेखा से उपर है ।
देश में
किसानों कि हालत कितना दयनीय
है इसका खुलासा साल 2001 कि
जनगणना से पता चलता है ...वर्ष
1991 और 2001 के
बीच 70 लाख से अधिक
किसानों ने जिनका मुख्यपेशा
किसानी था.. ने खेती
करना छोड़ दिया ...वहीं
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड
ब्यूरो के आकंडों की मानें
तो देश में 1997
से 2009
तक दो लाख 16
हज़ार 500
किसानों ने मौत को
गले लगा लिया ...
इससे ये अनुमान लगा
सकते है..जहां देश
में प्रतिदिन लगभग 2000 किसान
खेती छोड़ रहे है वही सैकड़ो
किसान आत्महत्या करने पर
मज़बूर हो रहे है...लेकिन
बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये दो
हज़ार किसान खेती छोड़कर जाते
कहां है .इसका जबाव
न सरकार के पास है न ही देश के
रोज़गार के आकड़े में मिलता
है …
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