शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012


सरकारी मुलाज़िमों से एक वास्ता
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कुछ दिनों पहले कुछ सरकारी मुलाज़िमों से पाला पड़ा उनके वर्ताव का नज़रिया किस तरीके से था...पेश एक रिपोर्ट
स्थान-इग्नू का स्टडी सेंटर देशबंधु कॉलेज

एक छात्र इग्नू के स्टडी सेंटर में जाता है उसको सेंटर में अपना एसाइनमेंट जमा कराना होता है ...
छात्र- सर एसाइनमेंट जमा कर लीजिए
इग्नू- उस काउंटर पर जाइए
छात्र- सर एसाइनमेंट जमाकर लीजिए
इग्नू -कोई जवाब नही...
छात्र- सर एसाइनमेंट जमाकर लीजिए...
इग्नू -कोई जवाब नही...
छात्र- सर एसाइनमेंट जमाकर लीजिए...
इग्नू- दिखाई नहीं देता फोन पर बात कर रहा हूं...
छात्र- दिखाई तो दे रहा है पर जमा तो कर लीजिए..
इग्नू- नही जमा कर रहा ..जाओं यहां से जो मन में आए कर लेना..जा के कह दो जिससे कहना है..
छात्र- ऐसे क्यूं बोल रहे है ...
इग्नू- बदत्तमीजी मत करों मै कह रहा हूं जाओं यहां से ...नही जमाकर करुगां तुम्हारा एसाइनमेंट
छात्र-सर बार बार ऐसे मत बोलिए एसाइनमेंट जमा करना आपका काम है और इसे जमाकर करने से मना नहीं कर सकते.
इग्नू- मै कह रहा हूं चले जाओं यहां से ..तुम बताओगे मुझे क्या करना है क्या नही करना..
छात्र- सर मै बता नही रहा हूं ये आपका काम है और इसेक लिए इग्नू आपको तनख्वाह देता है ...औऱ छात्र फीस देते है...आप छात्रों की सेवा करने के लिए बैठे हुए ..

इग्नू के कर्मचारी साहब अब बड़े गुस्से में आ गए है ..और अपनी कुर्सी से खड़े हो गए है,  फुल गुस्से में है ...जो मन में आया है वो बोल रहे है ...चिल्लाना शुरु क दिए है सभी कर्मचारी इक्कठ्ठे हो गए है ...सब मिलकर कह  रहे है एसाइनमेंट जमा नही करना है जो होगा देखा जाएगा...एक बार को मै चुप सा हो गाय लेकिन ज्यादा देर तक नही संभाल सका...अपने आप को ...सभांलता भी कैस जो एक पत्रकार होने का गुमान है  ...पर क्या पता था ये गुमान इन सरकारी मुलाज़िमों के सामने थोड़ी देर में ही उतर जाएगा ...


देखिए आगे की कहानी कैसे शुरु होती है...
छात्र एक बार को थोड़ी देर तक चुप रहता है ...फिर बोलता है सर एसाइनमेंट जमा कर लीजिए...कर्मचारी साहब फिर कहते है मै तुम्हारा एसाइमेंट नही जमा करुंगा जाओ जिसे बुलाना हो बुला लो ..जो करना है कर लो...

बेचारा छात्र को पत्रकारिता का सारा गुमान ज़मीन पर आ चुका है ...सोच रहा है कि क्या करें क्या न करें...
पर बहुत  देर सोचता है कि आखिर सरकारी प्रणालियां और सरकारी मुलाजिमों के खिलाफ लोगों को गुस्सा क्यों आता है ...भावनाएं और भी व्यक्त करु इससे पहले पूरू कहानी सुना देता हूं..

दूबारा जब छात्र के कहने पर इग्नू के कर्मचारी उसका एसाइनमेंट जमा नही करते तो देखिए छात्र क्या करता है

छात्र- इग्नू को कर्मचारियों से परेशान होकर अब पुलिस के शरण में जाता है और सोचता है की उसे वहां से कोई न्याय मिलेगा लेकिन देखिए आगे क्या ह्श्र होता है..
छात्र- 100 नम्बर पर कॉल करता है...पुलिस से रिस्पांस मिलता है
2 बजकर 15 मिनट पर कॉल करता है ठीक 15 मिनट बाद पुलिस आती है
पीसाआर बैन आता है..
अंगडाई लेते हुए पुलिस वाला कहता है.. क्या मामला है ...
छात्र अपना मामला सुनाता है
पुलिस वाला अंगडाई लेते हुए मामला सुनता है ..फिर कहता है करें अब...छात्र कहता है करें क्या सर ...इस तरह की घटना घटी है..कार्रवाई कीजिए..
पीसीआर में बैठे हुए ही ...पुलिस वाला बोलता है चलो थाने में एफआईआर डाल देना फिर देखते है की क्या हुआ है
छात्र बोलता है सर इग्नू के कर्मचारियों की ड्यूटी खत्म हो गई है ..और वो जाने वाले है ...देखिए गेट पर खड़े है ..वो है मोटरसाइकिल वाले..
    पुलिस वाला बोलता है तो क्या दौड़ के पकडू क्या...ऐसे तो नही होता न ..
बेचारा छात्र समाजिक नज़रिय का मारा...तमाम सारी बाते सोचने लगता है और खो जाता है फिर सोचने लगता है कि आखिर पुलिस पर लोगों को गुस्सा क्यों आता है ..तमाम सारी बाते सोचने लगता है ...
अब उसके दिमाग में वो भावनाए उत्पन हो रही है जो व्यवस्था के खिलाफ एक आम आदमी के दिमाग में उत्पन होती ही ..
तभी फोन आता है ..
थाने से बोल रहा हूं
हां भाई क्या मामला है..
छात्र- सर ऐसे हुआ है ..इस इस तरह का मामला है
कोई नहीं थाने आ जाओं और एक एफआईआर डाल दों देख लेगें
छात्र को गुस्सा आता है वो सोचता रहता है कि थाने जाउं न जाउं
अंत में वो ऐ सोच के थाने नही जाता है कि जब पीसीआर आई थी तो उसके सामने आरोपी थे और उसने कुछ नही किया तो थाने जाकर क्या होगा..फिर ये सोचता है कि मेरे जैसे कितने लोग थाने में जाते है कुछ नही होता तो मेरे जाने  से क्या होगा...एक औऱ बार ही सही फिर सरकारी मुलाज़िलों के पाला वैसे भी बहुत दिन हो गए थे ..कम से कम इनका हक़ीक़त तो सामने आई....
घटना के बाद से छात्र मायूस हुआ खुद पर नही..इस व्यवस्था पर...जो अपने पद पर एक बार बैठने के बाद अपने को सर्वसत्ताधारी समझते है...
 हल खोजने लगा इस सामंतवादी व्यवस्था का ..पर नही ढूंढ पाया...अब छात्र थाने भी नही गया..घर लौट आया...


 


गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

खेती..ना बाबा ना..


इंसान का पलायन चाहे जिस वज़ह से हो हमेशा दुखद होता है … आदमी कभी बेहतरी के लिए पलायन करता है तो कभी दुखी होकर पलायन कर जाता है । दरअसल प्रवास इंसानी ज़िन्दगी का एक हिस्सा सा बन गया है । भारत ..जिस देश की 70 प्रतिशत से अधिक की आबादी खेती से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से जुड़ी हुई है ..उस देश में पिछले कुछ सालों से लाखों किसान खेती को छोड़ चुके है..देश में साल दर साल किसानों की आत्महात्या की आकड़ो में बढ़ोत्तरी होती जा रही है । लेकिन सरकार GDP के आकड़े के सहारे यह दावा करती है कि देश में विकास हो रहा है...वहीं योजना आयोग सुप्रीम कोर्ट में यह दलील देता है कि 32 रुपये कमाने वाले ग़रीबी रेखा से उपर है ।



देश में किसानों कि हालत कितना दयनीय है इसका खुलासा साल 2001 कि जनगणना से पता चलता है ...वर्ष 1991 और 2001 के बीच 70 लाख से अधिक किसानों ने जिनका मुख्यपेशा किसानी था.. ने खेती करना छोड़ दिया ...वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आकंडों की मानें तो देश में 1997 से 2009 तक दो लाख 16 हज़ार 500 किसानों ने मौत को गले लगा लिया ... इससे ये अनुमान लगा सकते है..जहां देश में प्रतिदिन लगभग 2000 किसान खेती छोड़ रहे है वही सैकड़ो किसान आत्महत्या करने पर मज़बूर हो रहे है...लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये दो हज़ार किसान खेती छोड़कर जाते कहां है .इसका जबाव न सरकार के पास है न ही देश के रोज़गार के आकड़े में मिलता है …

रविवार, 15 जनवरी 2012


समाज और प्रशासन के बारे में मैक्स वेबर के विचार

प्रस्तावनाः- मानव जाति के एक संगठन के रुप में ऐतिहासिक काल से ही समाज ने सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के हित में और संघर्षो व विवादों को हल करने के लिए खुद को नियम व क़ानूनों का निर्माण किया है। चूंकि सरकार जिसका काम भी क़ानून बनाना है इस दृष्टि से सरकार औऱ समाज एकरुप है । समाज व्यक्तियों के ऐसे समूह को व्यक्त करता है जो इच्छानुसार विकसीत किए गए सिद्धांतो एंव नियमों से जुड़े होते है । और कम से कम या ज्यादा व्यवस्थित सामूहिक जीवन जीते है । सामाजिक विकास कि प्रक्रिया में राज्य एक संस्था के रुप में निर्मित होता है, और राज्य के पास बल प्रयोग की शक्ति होती है । राज्य सभी तरह के सामाजिक संस्थाओं को औपचारिक क़ानूनों , नियमों एंव व्यस्थाओं द्वारा नियंत्रित करता है । सरकार की क्रियाशीलता ही लोक प्रशासन है। सरकार क्या करती है या क्या नहीं करती है इसके द्वारा समाज प्रभावित होता है व इसको प्रभावित करता है । मैक्स बेवर उन कुछ एक विद्वानों में से है जिसने समाज औऱ प्रशासन के संबंधों को अधिक नज़दीक से जानने के लिए प्राचीन इतिहास से लेकर आधुनिक आर्थिक समाज का गहन अध्ययन किया , और उसने पाया किया की नौकरशाही तभी तक विद्यमान है जब तक पूंजीं कि एक स्थिर आय बनी हुई है। वेबर के शब्दों में "कर निर्धारण की एक स्थायी व्यवस्था नौकरशाही प्रशासन के स्थाई रुप से विद्मान रहने की पूर्व शर्त है ।

लोक प्रशासन व समाज:-
सामाजिक परिवर्तन व प्रगति ऐसी परिस्थियों का निर्माण करती है, जोकि सामूहिक क्रिया को प्रोत्साहन या लोक प्रशासनिक संस्थाओं द्वारा सरकारी बाध्यता को प्रोत्साहन देती है । राजनितिक शास्त्र के इतिहास में सामाजिक समझौते का सिद्धान्त एक चिरसम्मत सिद्धान्त रहा है । तीन महान दार्शनिकों हाब्स, लॉक, व रुसो ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । प्राकृतिक अवस्था के निरंतर संघर्ष को दूर करने के लिए राजनितिक समाज की स्थापना की गई । और सामान्य सामाजिक संस्था के रुप में राज्य और सरकार का जन्म हुआ । सामाजिक समझौते के तहत समाज का प्रत्येक सदस्य अपने कुछ अधिकार या समस्त अधिकारों को समाज को सौंप देता, और समाज सर्वोच्च बन जाता है । वस्तुत: यह समझौता प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से करता है । इस प्रकार राज्य और समाज के बीच विकसीत होने वाले संबंधों में अपने सामूहिक स्वरुप में प्रत्येक व्यक्ति को समष्टि के अविभाज्य अंग के रुप में स्वीकार करते है । लोक प्रशासन के क्षेत्र के विस्तार ने राज्य और समाज के बीच विकसीत होने वाले स्वरुप के ऐतिहासिक रुप से प्रभावित किया है ।
ड्वाइटो वाल्डो ( DWIGHT WALDO) के अनुसार लोक प्रशासन ही सरकार का मुख्य साधन है जिसकी सहायता से सामाजिक समस्याओं सामाधान किया जाता है । पश्चिमी देशों में नई सामाजिक समस्याओं जैसे , शहरीकरण , वृक्षों की सुरक्षा , सामाजिक कल्याण आदि का समाधान लोक प्रशासन द्वारा किया जा रहा है । भारत जैसे विकासशील देशों में भी राज्य लोक प्रशासन के माध्यम से सामाजिक समस्याओं को दूर करने में लगा है, ताकि सामाजिक आर्थिक विकास सुनिश्चित किया जा सके । आरंम्भ के राज्य ग्रामीण विकास , सामाजिक औद्योगिक विकास एंव शोषक स्तर के सुधार के जैसे कार्यों को संपादित करते थे लेकिन वर्तमान में लोक प्रशासन इसकी ज़िम्मेदारी उठा रहा है । समय के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया नित नई चुनौतियों को जन्म देती है । और इस चुनौतियों के समाधान के परिप्रेक्ष्य में लोक प्रशासन का अध्ययन क्षेत्र निरंतर व्यापक होता जा रहा हैं । पर्यावरण प्रदूषण, पारिस्थितकी संतुलन, जल संरक्षण, जैव विविधता जैसी अंतराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए लोक प्रशासन प्रयत्नशील दिखाई दे रहा है ।
एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा लोकप्रशासन में जेन्डर या स्त्री पुरुष विश्लेषण का है। कार्यो में महिला सहभागिता में लगातार प्रत्येक वर्ष वृद्धि होती जा रही हैं, जोकि कल्याणकारी व पारितोष (COMPENSATION) संबंधी नीतियों, व अन्य संबंधित मुद्दों उदाहरण के लिए, कार्य स्थल पर महिलाओं कि सुरक्षा आदि के संन्दर्भ में प्रशासनिक सुधार की मांग कर रहे है। इसी प्रकार अनेक मुद्दे जैसे बाल श्रम, अस्पृश्यता, बंधुआ मज़दूरी, व अन्य घृणित सामाजिक व्यवहार आदि को रोकना व निवारण करना, ये सभी प्रशासनिक पहल को मांग कर रहे है। विशेष रुप से विकासशील देशों में इसी के परिणाम स्वरुप इन देशों में लोक प्रशासन का क्षेत्र बहुत ही व्यापक हो गया है ।

समाज और प्रशासन के बीच संबंधों पर मैक्स वेबर के विचार:-

नौकरशाही पर मैक्स वेबर के विचार ऐतिहासिक और सामाजिक सिद्धान्त के वृहत दृष्टिककोण के एक महत्वपूर्ण अंग का सृजन करते है । वेबर ने आधुनिक राज्यों में नौकरशाही के उदय के मूल कारणों को जानने के लिए वेबर ने प्राचीन इतिहास का गहन अध्ययन किया उसने पाया की विशाल रोमन साम्राज्य को छोड़कर रोम में कोई भी औपनिवेशिक अधिकारी नहीं था। जूलियस सीजर ने स्थाई सिविल सेवा स्थापित करने का प्रयास किया था लेकिन सफलता नहीं मिली । लेकिन नौकरशाही का पूर्व विकसीत रुप " डिओलिशिएन " के शासन काल में दिखाई दिया । नौकरशाही के उदय और विकास ने रोमन साम्राज्य का पतन कर दिया इसका मुख्य कारण नौकरशाही में फैलता हुआ भ्रष्टाचार था । नौकरशाही ने शासकों पर अधिकार जमा लिया । और नागरिकों कि स्वतंत्रता के अधिकार पर भी शासन स्थापित कर लिया। विशाल प्रशासनिक तंत्र को सुचारु रुप से चलाने के लिए विशेष करों को अनिवार्य रुप से लागू किया । वेबर को इस बात का ज्ञान हुआ कि नौकरशाही तभी चल सकती है जब एक विकसीत पूंजीवादी अर्थव्यवस्था मौजूद है । वेबर के अनुसार , जहां तक अधिकारों की आर्थिक क्षतुपूर्ति की संभंध है पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का विकास नौकरशाही की पूर्व शर्त है ।